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September 1986

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मुक्ति अपनी विचारणा पर अंकुश रखने का नाम है। उसके लिये परलोक नहीं जाना पड़ता।

“हिन्दू संस्कृति को विश्व मान्यता मिलेगी। इसमें प्रथम रूस होगा, जो उन सिद्धान्तों को तथ्यों के अनुरूप पायेगा और अपनायेगा, साथ ही भारत के विद्वान भी ऐसा प्रयत्न करेंगे, जिससे उनका दर्शन साम्यवादी दर्शन के अनुरूप ढल जाये।

नास्ट्रॉडामस के अनुसार “विश्व का भविष्य उज्ज्वल है, किन्तु बीच-बीच में संकटों से युक्त है। इस भँवर से नाव पार ले जाने में भारत की, उसके मूर्धन्य व्यक्तियों की भारी भूमिका होगी।”

इन भविष्य कथनों को यदि विश्वस्त माना जाय तो इसका निष्कर्ष यह निकलता है कि विश्व के भविष्य निर्माण में मूर्धन्य भारतीयों की महती भूमिका होगी।

हो सकता है कि उपरोक्त संभावनाओं को साकार करने में वर्तमान तथा भावी प्रज्ञा पुत्र अंगद-हनुमान जैसी भूमिका निबाहें। संकटों को निरस्त करने एवं उज्ज्वल भविष्य को सुनिश्चित करने में उनका इतना बड़ा योगदान संभावित है कि समस्त मानवता उनकी सदा-सर्वदा के लिए ऋणी रहेगी।


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