बड़ा तपस्वी (kahani)

September 1986

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

कौशिक नामक एक ब्राह्मण बड़ा तपस्वी था। तप के प्रभाव से उसमें बहुत आत्म बल आ गया था। एक दिन वह वृक्ष के नीचे बैठा हुआ था कि ऊपर बैठी हुई चिड़िया ने उस पर बीट कर दी। कौशिक को क्रोध आ गया। लाल नेत्र करके ऊपर को देखा तो तेज के प्रभाव से चिड़िया जल कर नीचे गिर पड़ी। ब्राह्मण को अपने बल पर गर्व हो गया।

दूसरे दिन वह एक सद्गृहस्थ के यहाँ भिक्षा माँगने गया। गृहस्वामिनी पति को भोजन परोसने में लगी थी। उसने कहा- “भगवन्, थोड़ी देर ठहरो अभी आपको भिक्षा दूँगी।” इस पर ब्राह्मण को क्रोध आया कि मुझ जैसे तपस्वी की उपेक्षा करके यह पति-सेवा को अधिक महत्व दे रही है। गृहस्वामिनी ने दिव्य दृष्टि से सब बात जान ली। उसने ब्राह्मण से कहा- “क्रोध न कीजिए मैं चिड़िया नहीं हूँ। अपना नियत कर्तव्य पूरा करने पर आपकी सेवा करूंगी।”

ब्राह्मण क्रोध करना तो भूल गया, उसे यह आश्चर्य हुआ कि चिड़िया वाली बात इसे कैसे मालूम हुई? ब्राह्मणी ने इसे पति सेवा का फल बताया और कहा कि इस संबंध में अधिक जानना हो तो मिथिलापुरी में तुलाधार वैश्य के पास जाइए। वे आपको अधिक बता सकेंगे।

भिक्षा लेकर कौशिक चल दिया और मिथिलापुरी में तुलाधार के घर जा पहुँचा। वह तौल-नाप के व्यापार में लगा हुआ था। उसने ब्राह्मण को देखते ही प्रणाम अभिवादन किया और कहा- “तपोधन कौशिक देव? आपको उस सद्गृहस्थ गृहस्वामिनी ने भेजा है सो ठीक है। अपना नियत कर्म कर लूँ तब आपकी सेवा करूंगा। कृपया थोड़ी देर बैठिये। “ब्राह्मण को बड़ा आश्चर्य हुआ कि मेरे बिना बताये ही इसने मेरा नाम तथा आने का उद्देश्य कैसे जाना? थोड़ी देर में जब वैश्य अपने कार्य से निवृत्त हुआ तो उसने बताया कि मैं ईमानदारी के साथ उचित मुनाफा लेकर अच्छी चीजें लोक-हित की दृष्टि से बेचता हूँ। इस नियत कर्म को करने से ही मुझे यह दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई है। अधिक जानना हो तो मगध के निजाता चाण्डाल के पास जाइए।

कौशिक मगध चल दिये और चाण्डाल के यहाँ पहुँचे। वह नगर की गंदगी झाड़ने में लगा हुआ था। ब्राह्मण को देखकर उसने साष्टाँग प्रणाम किया और कहा- “भगवन् आप चिड़िया मारने जितना तप करके उस सद्गृहस्थ देवी और तुलाधार वैश्य के यहाँ होते हुये यहाँ पधारे यह मेरा सौभाग्य है। मैं नियत कर्म कर लूँ, तब आपसे बात करूंगा। तब तक आप विश्राम कीजिये।”

चाण्डाल जब सेवा-वृत्ति से निवृत्त हुआ तो उन्हें संग ले गया और अपने वृद्ध माता पिता को दिखाकर कहा- “अब मुझे इनकी सेवा करनी है। मैं नियत कर्त्तव्य कर्मों में निरन्तर लगा रहता हूँ इसी से मुझे दिव्य दृष्टि प्राप्त है।”

तब कौशिक की समझ में आया कि केवल तप साधना से ही नहीं, नियत कर्त्तव्य, कर्म निष्ठापूर्वक करते रहने से भी ‘आध्यात्मिक का लक्ष्य’ पूरा हो सकता है और सिद्धियाँ मिल सकती हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118