अकबर की सेना से मोर्चा लिया (kahani)

September 1986

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राणा प्रताप ने बहुत दिन तक पर्वतों में छिपे रहकर अकबर की सेना से मोर्चा लिया पर जब उनके साधन समाप्त हो गये तो निराशा और दुःखी होकर लड़ाई समाप्त करने की बात सोचने लगे। भामाशाह नाम के एक धनी व्यक्ति ने जब यह सुना तो उसकी भावनाएँ उभर आईं। मेरे पास धन है, यदि वह देश जाति के काम न आया तो मेरा धनी रहना व्यर्थ है। वह दौड़ा हुआ राणा के पास गया और उन्हें धैर्य बँधाते हुये कहा- “मेरे पास जो कुछ है उसे आप ले लें और युद्ध जारी रखें।” राणा ने भामाशाह को छाती से लगा लिया और कहा- “तुम्हारा जैसे उदार व्यक्ति जिस भूमि में मौजूद हैं वह कभी गुलाम नहीं बन सकती।” वह धन बहुत था उसे लेकर राणा ने नई फौज का संगठन किया और फिर लड़ाई आरम्भ कर दी।

धन की सार्थकता इसी में है कि वह धर्म की रक्षा में व्यय हो। जो कंजूस समाज की अत्यन्त आवश्यक समस्याओं की ओर से मुँह मोड़कर अपने ही बेटे नाती के लिए धन जोड़ते रहते हैं उन मूर्खों के लिये भामाशाह अपना नाम अजर अमर करते हुये भी एक आदर्श उदाहरण छोड़ गये हैं।


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