अदृश्य सहायता

September 1942

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(पं. श्रीशंकर लाल जी व्यास ‘महेश’ कविरत्न)

एक बार मैं घोड़े की सवारी से किसी गाँव को जा रहा था, रात्रि हो जाने से रास्ता भूलकर एक बीहड़ जंगल में फंस गया। उस घने अन्धकार में यत्र-तत्र शृंगाल, भालू आदि जंगली जानवरों के शब्द सुनाई देने लगे।

दिशा-भूल होने से मार्ग सूझ नहीं पड़ता था, घोड़े से उतर कर उसकी बागडोर हाथ में ले पैदल ही पैदल रास्ता तय करता हुआ भ्रमण करने लगा। कोसो फिरने पर भी पगडंडी का कोई पता नहीं चलता था और न किसी गाँव का चिन्ह ही कहीं प्रतीत होता था। जिधर देखो उधर जंगल ही जंगल दिखाई देता था। आगे चला तो एक गहरा नाला सामने आ गया जिसमें जल की सनसनाती हुई तीव्र धारा बह रही थी। सब प्रकार हताश होकर वहीं बैठ गया और प्रभु की प्रार्थना करने लगा।

ऐसे घोर समय में निराशा को चीरती हुई आशा की एक किरण दिखाई दी। कुछ दूरी पर अचानक मोटर की सर्च लाइट जैसी रोशनी चमकी और फिर वह विलुप्त हो गई। मैं उठ खड़ा हुआ और उसी ओर चल दिया। देखा तो वहीं से सड़क जा रही है, मैं उस पर चलकर अपने गाँव पहुँच गया। तब मैंने समझा कि पथ भूले मानवों को सन्मार्ग पर लाने वाली दैवी सहायता अवश्य प्राप्त होती है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118