प्रार्थना के अनुभव

September 1942

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(ले.श्री मुरलीधर प्रसादसिंह ‘मदन’ सैदपुरी)

मैं अन्दाजन अठारह-उन्नीस वर्ष का हूँगा। उस समय मैं मैट्रिकुलेशन में छपरे पढ़ता था। वहीं अपने स्कूल के छात्रावास में तीव्र ज्वर से पीड़ित हो गया। तीन-चार रोज तक बुखार में बेहोश पड़ा रहा। उसके बाद ज्वर कुछ उतरा और मुझे पथ्य मिला। पथ्य मिलते ही मैं घर के लिये रवाना हुआ। घर पहुँचने पर एक दो दिन के बाद फिर ज्वर हो आया। ज्वर जल्दी हटता नहीं था। कई दिन बीत गये। अपने अध्ययन में अधिक बाधा देख तबियत बेचैन होने लगी। अपने वस्त्र बदल कर श्री कृष्ण जी की प्रार्थना करने लगा। प्रार्थना मैंने लगभग पन्द्रह मिनट तक की। प्रार्थना से मैंने श्री कृष्णचन्द्र जी से याचना की कि ज्वर मेरा जल्दी हट जाय और मेरे कर्म का भोग्य अभी बाकी हो, तो स्कूल से अवकाश मिलने पर मेरे कर्त्तव्य के भोग्यानुसार ज्वर-यातना मुझे मिले। प्रार्थना करने के बाद से धीरे-2 ज्वर मेरा कम होने लगा और दूसरे दिन बुखार एकदम गायब हो गया। स्वस्थ होने पर अध्ययनार्थ मैं छपरे चला गया। पुनः ग्रीष्मावकाश में कठिन-ज्वर से पीड़ित हुआ। एक सप्ताह बाद अपने आप बुखार उतर गया और मैं चंगा हो गया।


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