गोल्डस्मिथ का स्मारक

September 1942

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(श्री सत्यप्रकाश जी बंसल, हापुड़)

आयरलैण्ड के महात्मा गोल्डस्मिथ अपनी उदारता और दयालुता के लिए प्रसिद्ध थे। अनेक दीन-दुःखियों को उनके द्वारा गुप्त सहायता प्राप्त होती रहती थी।

एक दिन एक गरीब स्त्री जिसका पति और पुत्र बीमार पड़ा था, बहुत दुखी हुई। घर में अन्न का एक दाना तक न था। बीमारी अच्छी हो चली थी, पर पथ्य के लिए दूध तक का कोई प्रबन्ध न था। पड़ोसियों ने बताया कि इस प्रकार के प्रसंगों में गोल्डस्मिथ नाम के हकीम बड़ा ही अच्छा इलाज करते हैं।

स्त्री गोल्डस्मिथ के पास पहुँची और कहा-हकीम जी! मेरे घर में बीमारी है, कृपा करके उन्हें देखकर दवा दारु कर दीजिए। गोल्डस्मिथ बड़े आदमी थे, पर ये बिना किसी घमंड के उस स्त्री के साथ चल दिये। देखा कि टूटी-फूटी झोपड़ी में यह दुखी परिवार दरिद्रता के कारण नाना प्रकार के कष्ट उठा रहा है। उनका हृदय दया से भर गया। उनने इन दुखियों से कहा-मेरा आदमी खुद आकर तुम्हें दवा दे जायगा।

दो घंटे बाद गोल्डस्मिथ का नौकर दवा की एक छोटी डिबिया स्त्री को दे गया। उसके ऊपर एक कागज चिपका हुआ था, “जरूरत के मुताबिक इस दवा को काम में लाइये।” घर के तीनों व्यक्ति उत्सुकता से उस डिब्बी को देखने लगे। खोली तो उसमें दस गिन्नियाँ रखी हुई थी। सब के चेहरे पर प्रसन्नता दौड़ गई। इस पैसे से उनने अपना स्वास्थ्य पाया और व्यापार किया। कुछ दिन में वे लोग बड़े धनवान हो गये।

उस परिवार ने अपनी पुरानी टूटी झोपड़ी को सुरक्षित रखा और पास ही एक बहुत बड़ा महल बनवाया। उन दोनों के बीच में महात्मा गोल्डस्मिथ की मध्य मूर्ति और दस गिन्नियों की डिब्बी अत्यन्त सुन्दर भव्य मन्दिर में प्रदर्शनार्थ रखी गई। झोपड़ी पर लिखा हुआ था-”गोल्डस्मिथ की दवा खाने से पहले।” महल के दरवाजे पर लिखा हुआ था-”गोल्डस्मिथ की दवा खाने के बाद।” बीच में वह दवा की डिब्बी रखी हुई थी जिसमें दस गिन्नियाँ थी।

आयरलैण्ड के उस स्थान को देखने के लिए हर साल हजारों यात्री दूर-दूर से जाते हैं और अनुभव करते हैं कि एक महात्मा की छोटी सी सहायता से व्यक्तियों का कितना कल्याण होता है और वह उदारता किसी प्रकार अनन्त काल के लिये उसका सच्चा स्मारक बन जाती है।


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