(श्री सोमनाथ जी नागर, मथुरा)
एक बार जब मैं लगभग 12 वर्ष का था, अपने ताऊ जी के यहाँ अजमेर गया हुआ था। एक दिन ताऊ जी के साथ स्टेशन पर गया। ताऊ जी किसी कार्यवश वहाँ रह गये और मुझ से घर लौटने को कहा। वहाँ से लौट कर मैं आ रहा था कि बड़े डाकखाने के सामने के तिराहे से मार्ग भूल कर दूसरी सड़क पर चल दिया। दस-पाँच कदम ही आगे बढ़ा था कि मुझे एक आवाज मालूम पड़ी कि मेरी मातृ भाषा (गुजराती) में कोई कह रहा है- ‘अरे तिमने क्या जाय छै’ (अरे उधर कहाँ जाता है)। मैंने मुड़ कर देखा, कोई नहीं था, मेरी भूल मुझे मालूम पड़ी और वापिस तिराहे पर आकर अपने घर आ गया। रास्ते में इस पर विचार किया और अब तक अनुभव करता हूँ कि वह ईश्वर की आवाज थी।
भूले हुए लोगों को सन्मार्ग पर लाने के लिए ऐसी ही आकाशवाणी ईश्वर हर एक के लिए किया करता है, किन्तु कैसे दुःख की बात है कि लोग उस पर ध्यान न देकर उलटे मार्ग पर ही चलते जा रहे हैं।