जीवन का ध्येय

September 1942

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ले. श्री सागर सिंह जी

जीवन का यह ध्येय नहीं हैं।

(1)

किसी तरह भी चलते जाना,

किसी तरह भी जलते जाना,

विष भी पीकर शंकर बनना-

केवल मधु ही पेय नहीं हैं।

जीवन का यह ध्येय नहीं हैं।

(2)

अटल हिमालय भी टल जाये;

दिनकर ज्योतिहीन हो जाये;

पथ पर रुकने से बढ़कर-

इस जीवन में कुछ हेय नहीं है।

जीवन का यह ध्येय नहीं है।

(3)

आत्म विवशता से घबरा कर;

आँखों में आँसू छलका कर;

जग की मूल आत्म रक्षा है-

भीख माँगना प्रेय नहीं है।

जीवन का यह ध्येय नहीं है।


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