ले. श्री सागर सिंह जी
जीवन का यह ध्येय नहीं हैं।
(1)
किसी तरह भी चलते जाना,
किसी तरह भी जलते जाना,
विष भी पीकर शंकर बनना-
केवल मधु ही पेय नहीं हैं।
जीवन का यह ध्येय नहीं हैं।
(2)
अटल हिमालय भी टल जाये;
दिनकर ज्योतिहीन हो जाये;
पथ पर रुकने से बढ़कर-
इस जीवन में कुछ हेय नहीं है।
जीवन का यह ध्येय नहीं है।
(3)
आत्म विवशता से घबरा कर;
आँखों में आँसू छलका कर;
जग की मूल आत्म रक्षा है-
भीख माँगना प्रेय नहीं है।
जीवन का यह ध्येय नहीं है।