जिस मनुष्य की अच्छे कर्म के लिए निन्दा होती है, वह बड़ा भाग्यवान है। किन्तु जो अपने भले कर्मों के बदले में धन्यवाद या किसी फल की आशा करता है। वह महा अभागा है। क्योंकि वह सुकर्मों का मूल्य चाहता है। जिस मनुष्य की उसने भलाई की हो, उसे सुखी देखने की प्रसन्नता ही उसके लिए पूर्ण पुरस्कार है।
-वियोगी हरि।
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प्रेम सदा सहिष्णु और मधुर है। प्रेम में ईर्ष्या, आत्मश्लाघा, गर्व, अशिष्ट आचरण, स्वार्थ, क्रोध और अधर्म के लिए कोई स्थान नहीं है।
-महात्मा ईसा।