सिकन्दर महान् अपनी दिग्विजय करता हुआ प्रचंड वेग से भारत में बढ़ता आ रहा था। उसकी सैन्य शक्ति इतनी अधिक थी कि मार्ग में आने वाले राजा को या तो संधि करनी पड़ती या पीठ दिखा कर भाग जाना पड़ता। इसके अलावा मृत्यु को छोड़कर और कोई चारा न था।
एक बार उसे एक छोटे से भारतीय राजा से मुकाबला करना पड़ा। संयोग से उसका नाम भी सिकन्दर था। यह छोटा सिकन्दर भी बड़ा वीर था। बड़े सिकन्दर की अजेय सेना का ज्ञान रखते हुए भी वह पराधीन बनने को तैयार न हुआ, निदान युद्ध ठन गया।
सिकन्दर महान ने अपने दूत के द्वारा छोटे सिकन्दर के पास सन्देश कहलवा भेजा कि या तो मुझसे संधि कर लो, वरना पीठ दिखा कर ‘सिकन्दर नाम को कलंकित न करना। छोटे सिकन्दर ने युद्ध करने का ही उत्तर दिया।
लड़ाई हुई। अधिक शक्ति के सामने थोड़ी सी सेना का बस न चला। छोटा सिकन्दर वीर गति को प्राप्त हो गया। महान सिकन्दर ने अपने शिविर में यह समाचार सुना कि हमारे सेनापतियों ने उस छोटे राजा को मार गिराया, तो वह उठ खड़ा हुआ और वहाँ पहुँचा जहाँ राजा का मृतक शरीर पड़ा हुआ था।
महान सिकन्दर ने शाही सम्मान के साथ उस राजा की अर्थी के कंधा लगाया और उस स्थान पर एक बड़ा स्मारक बनवाया, जहाँ सोने के अक्षरों में लिखवाया गया था-
“इसने सिकन्दर नाम की गौरव रक्षा की”
राजा राम मोहनराय-