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September 1942

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-उदयपुर के महाराजा साहब ने मुझसे कहा-”स्वामी जी, आप मूर्ति पूजा का खण्डन छोड़ दें और यहाँ की महादेव जी की गद्दी के महन्त बन जावें। इस गद्दी की लाखों रुपये की सम्पत्ति है।” मैंने हँस कर उत्तर दिया-”राजन, आप कहते हैं, सो तो ठीक है। पर मेरे सिद्धान्त और स्वतन्त्र विचार पैसे के ऊपर निछावर नहीं हो सकते। मेरे जीवन का उद्देश्य महन्तों की गद्दी को हटाना है न कि महन्त बनना।”

-महर्षि स्वामी दयानन्द जी सरस्वती।

जो आत्मा पर विजय पाता है और इच्छाओं, भय और क्रोध का दमन करता है, वहीं सबसे अधिक बलशाली है।

-अफलातून।


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