कथाकार : युग निर्माता

September 1942

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जनता में ज्ञान प्रसार करना जिसने अपना उद्देश्य बना लिया था और जो अपने इसी ध्येय पर हँसते 2 बलिदान हो गया वह ईसप ग्रीस देश के लिडिया प्रान्त में ईसा से कोई छः सौ वर्ष पूर्व पैदा हुआ था।

वह गुलाम जाति में पैदा हुआ था, उसके माता पिता क्रीत दास थे। ईसप ने प्रतिभा और साहस के कारण गुलामी से मुक्ति पाई और साधारण नागरिक की भाँति जीवन यापन करने लगा।

दुनिया में बहुत-बहुत बड़े और महत्वपूर्ण-धर्मकार्य हैं, किन्तु ज्ञान दान से बढ़कर आज तक और कोई भी बड़ा काम तलाश नहीं किया जा सका है। इमारतें, कुआं, तालाब, धर्मशाला, मन्दिर कुछ समय बाद गिर जाते हैं, दिया हुआ दान कुछ समय उपरान्त समाप्त हो जाता है, स्मारक और कीर्ति स्तम्भ गिर कर टूट फूट जाते है, भोजों में दिया गया अन्न दूसरे दिन विष्ठा हो जाता है, वाहवाही के काम को दस दिन बाद भुला दिया जाता है। इन अस्थिर कार्यों का फल भी क्षणिक और बहुत थोड़ा होता है, किन्तु ज्ञान दान तो महान वस्तु है। उसकी तुलना इनमें से किसी के साथ नहीं हो सकती, क्योंकि ज्ञान के ऊपर ही संसार की शान्ति, सुव्यवस्था, धर्माचार एवं परलोक सुख निर्भर है। ईसप ने इस महत्व को समझा और उसने सारे सुख साधनों से मुँह मोड़ कर ज्ञान का प्रचार करना अपना जीवन ध्येय बना लिया।

वह उपदेशपूर्ण कहानियाँ गढ़ता था। वे कहानियाँ इतनी प्रभावशाली होती थीं कि राजा और प्रजा पर तीर की तरह असर करती थी। जिस वार्तालाप के साथ ईसप की छोटी-छोटी कहानियाँ जुड़ जातीं, वह इतना प्रभावशाली हो जाता कि उसके द्वारा दूसरे के मन पर गहरी छाप पड़ती। ईसप अपनी निर्भीकता के लिए प्रसिद्ध था, उसने बिना किसी भेद-भाव के सबल और निर्बल, सत्ताधारी और असहाय, राजा और प्रजा के साथ इन कहानियों का उपयोग किया और जुल्म-ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठाई।

छोटे-छोटे उदाहरण, उक्तियाँ और कथानक ऐसे प्रभावशाली होते हैं कि बात की बात में लोगों की मनोदिशा को उलट देते हैं। जुल्मों से डरी हुई जनता को सावधान रहने, असहयोग करने और जैसे भी बन सके बदला लेने की भावना को उन कहानियों ने ऐसा जागृत कर दिया कि सर्व साधारण का साहस कई गुना बढ़ गया और मनमानी करने वालों का दबदबा फीका पड़ने लगा।

यह बात वहाँ के सत्ताधारी सहन न कर सके। उन्होंने प्रजा को भड़काने, अधर्म फैलाने आदि नाना प्रकार के दोष ईसप पर लगाये, प्रजा में से भी गिरह की अकल न रखने वाले, अपना हित अनहित न पहिचानने वाले बहुत से मूढ़ प्रजाजन भी उन जालिमों के साथ हो लिये। राजा और प्रजा पक्ष दोनों और से उस पर दोषारोपण किया जाने लगा। वह बन्दी बनाया गया और अदालत में उपस्थित किया गया। न्यायाधीश ने उसे पहाड़ पर से ढकेल कर मार डालने का हुक्म दिया। ईसप को पर्वत की ऊँची चोटी से गिरा दिया गया। नीचे पहुँचते-पहुँचते उसका शरीर टुकड़े-टुकड़े हो गया।

ईसप का शरीर मर गया, पर उसकी अन्तरात्मा जीवित रही। कुछ समय पश्चात समस्त ग्रीस में ईसप के सिद्धान्त स्वीकार किये गये। उसकी कहानियाँ बड़े आदर के साथ कही और सुनी जाने लगी। दो शताब्दियों के उपरान्त उस देश ने अपने देश की उस विमल विभूति को पहचाना, तब कहीं उसका समुचित आदर हुआ। उस देश के विद्वानों ने अपने इतिहास में से सात महापुरुषों को ढूँढ़ निकाला और उनकी प्रतिष्ठापूर्वक मूर्तियाँ स्थापित की। इन सप्त ऋषियों में ईसप भी एक था।

ईसप की नीति कथायें समस्त संसार की भाषाओं में अनुवादित हुई हैं। भारत में भी उसकी अनेक कथाएँ प्रचलित है। इनमें से कुछ छोटी-छोटी कथाएँ अखण्ड-ज्योति के पाठक भी अगले अंकों में पढ़ते रहेंगे।

गोखले-


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