सत्य धर्म का पालन

September 1942

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(ले.-राजकुमार हरभगत सिंह जी भंडरा, स्टेट)

मेरा अटल विश्वास है कि जहाँ धर्म है, वहाँ यश है, जहाँ अधर्म है, वह क्षय है। मेरे जिले में कई दैवी संपत्तियां हैं, जो सत् पर आरुढ़ रह कर अपना वैभव बढ़ा चुके हैं तथा बढ़ा रहे हैं। इसी तरह अधर्म से नाश होता हुआ भी देखता हूँ। मेरी 43 वर्ष की आयु इस संसार में गत हो चुकी है। बचपन से ही सत्संगति में रहा। मैट्रिक में पढ़ता था, तब भी अच्छी संगति थी। मादक द्रव्यों की बात तो दूर, कभी पान, तम्बाकू तक का भी सेवन नहीं करता। प्रातः चार बजे उठना, ईश्वर भजन में लीन हो जाना, सूर्योदय से पूर्व नदी पर स्नान के लिए पहुँचना और आसन, प्राणायाम, हवन, जप आदि से निवृत्त होकर 8 बजे घर आना और गृह कार्यों में लग जाना। दोपहर को आधे घन्टे और शाम को ढाई घंटे फिर भजन करना। रात को सामूहिक प्रार्थना करना, यह मेरा नित्य नियम है। 12 साल से यह कार्यक्रम नियमित रूप से चल रहा है।

नियमित धार्मिक कार्यों का अत्युत्तम फल में सदैव अनुभव करता हूँ। आपत्तियाँ, कष्ट और चिन्ताओं से मैं बचा रहता हूँ। सभी कार्य यथाविधि सरलतापूर्वक चलते रहते हैं। चारों ओर दिव्य आनन्द की लहरें दौड़ती दृष्टिगोचर होती है। दुख रूप असत्य का परित्याग कर देने से सुखरूप सत्य शेष रह जाता है। जो सत्य धर्म पर आरुढ़ हैं, ईश्वर उनके लिए सुख−शांति की व्यवस्था करता है। इस सिद्धान्त पर विश्वास करता हुआ मैं उसकी सचाई का पूरी तरह अनुभव करता हूँ।


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