कल्याण का मार्ग

September 1942

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(श्री पं. रामेश्वरानन्द जी शर्मा)

सुना करता था- हिमालय में सवा लाख पर्वत और सवा करोड़ गंगा है। इस वर्ष उत्तराखण्ड के बद्रीनाथ, गंगोत्री, उत्तर काशी आदि अनेकानेक तीर्थों की अमृतमयी यात्रा करते हुए मैंने देखा है कि, सचमुच असंख्य आकार-प्रकार के पर्वत और अनेक रूप धारिणी गंगायें इस पुण्य प्रदेश में बह रही हैं, जिनका जल भगवती के समान ही पवित्र है और उसमें स्नान करने से वैसी ही आत्मशक्ति का आविर्भाव होता है। गणना करने पर यदि उन शैल-श्रृंखलाओं की संख्या सवा लाख और इन कल−कल वाहिनी पुण्य धाराओं की संख्या सवा करोड़ हो, तो कुछ आश्चर्य नहीं है।

उत्तराखण्ड के दुर्गम तीर्थों की यात्राओं में जो महत्वपूर्ण आध्यात्मिक अनुभव मुझे हुए हैं, उनका वर्णन करने का आज अवसर नहीं हैं, वह तो फिर कभी पाठकों के सामने उपस्थित किये जावेंगे, आज तो एक ऐसी बात की चर्चा इन पंक्तियों में करूंगा, जो सर्व साधारण के लिए उपयोगी है।

यहाँ के निवासी पर्वतीय लोग, नवीन सभ्यता से अभी विशेष परिचित नहीं हुए हैं, उन तक बीसवीं सदी की मायावी लहरें अभी नहीं पहुँची हैं। इसलिए यह लोग गरीबी में रहते हुए सन्तोष करते हैं और अपनी कड़ी मेहनत की कमाई से रूखा-सूखा खाकर, बेफिक्री की नींद में सो जाते हैं। यह लोग अभी लोभ के वशीभूत नहीं हुए हैं, इसलिए चोरी, उठाईगीरी का चलन उधर नहीं हैं। हम लोग चौड़े में अपना सामान खुला छोड़ देते हैं, मगर क्या मजाल है कि एक पाई भी गुम हो जाय। यह लोग फैशन के गुलाम नहीं है, शरीर ढ़कने के लिए जरूरत भर कपड़े पहन कर काम चला लेते हैं। उन्होंने अपनी जरूरतों को बढ़ाया नहीं हैं, वरन् बहुत सीमित रखा है। इसलिए झूठ बोलने, दम्भ करने, मायाचार या छल−कपट का उनमें प्रवेश नहीं हुआ हैं। ऐसा प्रतीत होता हैं, मानों सत्य और सादगी वर्तमान युग की आसुरी सभ्यता के भय से इस पर्वतीय प्रदेश में आकर छिप रही हो।

इस पुण्य प्रदेश के निवासियों और बम्बई आदि के सभ्यताभिमानी नागरिकों की स्थिति पर तुलनात्मक दृष्टि से देखता हूँ, तो अनुभव करता हूँ कि यह असभ्य, अशिक्षित उन सभ्य शिक्षितों की अपेक्षा हजार गुने सुखी और लाख गुनी सन्तुष्ट हैं और सच्ची मनुष्यता का जीवन व्यतीत करते हैं।

सादगी, जरूरतों को कम रखना, परिश्रमशीलता और ईमानदारी के आधार पर ही मानव-जाति में सच्ची सुख शान्ति की स्थापना हो सकती हैं। इस पाठ को इन अशिक्षित पर्वतीय बन्धुओं से शिक्षित और सभ्य संसार सीख ले, इसी में उसका कल्याण है।


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