अन्याय की कमाई

September 1942

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(पं. प्रसादीलाल शर्मा ‘दिनेश’ कराहल)

मैं आज 18 वर्ष से पटवारी हूँ और इस पटवारगिरी की दशा में मैंने अपनी सरकारी मासिक आय से पृथक अन्याय से घूस में कितना ही धन उपार्जन किया और बेचारे दीन-दुखिया की आत्माओं को दुखाया।

परिणाम यह हुआ कि मेरे दो नौजवान ज्येष्ठ भ्राताओं की अनायास ही अकाल मृत्यु हो गई, जो सारी गृहस्थी के भार को उठाने वाले थे। उनकी मृत्यु के पश्चात् मैं अकेला ही सारी गृहस्थी के भार को उठाने वाला रह गया और वह सब धन भी मुकदमाबाजी में नष्ट हो गया एवं अनेक विपत्तियों से ऐसा घिर गया कि जीवन से ऊबकर आत्म हत्या करने के लिए तैयार हो गया। इसके लिए कुछ विष पदार्थों का भी संग्रह कर लिया।

उसी दिन दैवयोग से मेरे हल्के के एक ग्राम में एक खाकी महात्मा पधारे। उनसे मेरा सत्संग हुआ, उन्होंने मेरी दुर्दशा देखकर कहा-’बेटा! यह सब तेरे अन्याय से धन कमाने का फल है। यदि तू आज ही यह निश्चय कर ले कि मैं अन्याय से धन उपार्जित न करूंगा और दीनों की यथाशक्ति सहायता करूंगा, तो भगवान तेरा कल्याण करेंगे।”

मैंने उसी समय हाथ में तुलसीदल लेकर परमात्मा की सौगन्ध खाई कि अब कदापि अन्याय से धन प्राप्त न करूंगा। 10 साल बीत गये, मैं न्याय की कमाई खाता हूँ और नियम पूर्वक भगवान का भजन करता हूँ। इस समय मेरे तीन पुत्र हैं तथा भाइयों के सामने से भी अच्छी हालत में हूँ। निस्सन्देह अधर्म का धन पारे की तरह फूट कर निकल जाता है और धर्म का थोड़ा धन भी वट बीज के समान फल-फूल कर विशाल बन जाता है।


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