आपत्तियों का मुकाबला करो!

September 1942

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आपत्तियाँ उन पर आती हैं जो आपत्तियों से डरते हैं। जो विपत्ति से घबराते नहीं, वरन् उसका स्वागत करने को सदैव तैयार रहते हैं वह उनके पास भी नहीं फटकती। दूसरे लोग भले ही समझते रहे कि उस पर आपत्ति आई हुई है पर वह स्वयं उस स्थिति में भी प्रसन्न रहता है। जो सौभाग्य में खुशी से नहीं नाचते वे दुर्भाग्य के समय रोते भी नहीं। जो सफलता पर उछलता है वही असफलता पर सिर धुनता है। विचारशील मनुष्य समझता है कि कठिनाइयाँ एक प्रकार का व्यायाम है जिनका निर्माण इस लिए किया गया है कि इनके द्वारा मनुष्य अपनी उन्नति कर सके। जिसने अपने को ऐश आराम का गुलाम नहीं बना लिया है वह विपत्ति को सृष्टि का एक नियम समझेगा और उसे देखकर जरा भी विचलित न होगा। बहादुर वह है जो विपत्तियों के समूह को देखकर भी नहीं डरता और एक योद्धा की तरह उनका मुकाबला करता है।

किसी कठिनाई से मत डरों। भय और व्यग्रता को छोड़कर हर परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए तैयार रहो। जब कोई संकट आवे तो हँसते हुए उसका सामना करो। स्मरण रखो, संकट के समय मुसकराहट से बढ़कर और कोई सहायक नहीं हो सकता।


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