जो मनुष्य अपने सुकर्मों का मूल्य चाहता है, तो जिस मनुष्य की उसने भलाई की हो, उसके लिये उसे सुखी देखने की प्रसन्नता ही पूर्ण पुरस्कार है।
-वियोगी हरि।