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September 1942

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जो मनुष्य अपने सुकर्मों का मूल्य चाहता है, तो जिस मनुष्य की उसने भलाई की हो, उसके लिये उसे सुखी देखने की प्रसन्नता ही पूर्ण पुरस्कार है।

-वियोगी हरि।


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