रोहिणी शकट भेद योग

September 1942

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(सतयुग से उद्धृत)

(1)

वर्तमान काल की ग्रह गणना से ज्ञान होता है कि संसार में विनाश काल उपस्थित होने वाला है। आकाश में जैसी ग्रह स्थिति 5000 वर्ष पूर्व महाभारत युद्ध के महा विनाश से पूर्व आई थी, वैसी ही अब उपस्थित हो रही है। अर्थात् इसी आषाढ़ मास में शनि द्वारा रोहिणी शकट का भेदन, श्रावण कृष्णा अमावस्या से भाद्रपद कृष्ण अमावस्या पर्यन्त एक मास में सूर्य चन्द्र के 3 ग्रहण और आगे आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष की अमावस्याओं को पाँच-पाँच ग्रह एकत्र हो रहे हैं। नभमंडल में होने वाले इन ग्रह नक्षत्र जन्य उत्पातों के परिणाम से स्पष्ट ज्ञात होता है कि समस्त संसार में घनघोर संग्राम, महामारी, भूकम्प, अनावृष्टि, अतिवृष्टि, दुर्भिक्ष आदि भाँति-भाँति के संकटों से असंख्य प्राणी काल के गाल में समा जावेंगे। भौतिक विज्ञान के विनाश की यह पूर्व सूचना है।

जिन-जिन देशों में यह ग्रहण दृष्टिगोचर होंगे, उन-उन देशों में अत्यन्त अनिष्ट फल दिखाई देगा। राजनीति में विलक्षण रीति से उलट फेर हो, प्रजा सत्तात्मक राज्य स्थापित करने के लिये जनता का विशेष आग्रह हो, संसार में षड़यन्त्र, हत्या, उत्पन्न हों, पन्द्रह दिन के अन्तर से एक साथ तीन ग्रहणों का होना समस्त संसार के लिए ही महान अनिष्टसूचक है।

-ज्योतिषी हरदेव शर्मा त्रिवेदी, सोलन

(2)

रोहिणी शकट भेद योग वैसे तो शनि के एक राशिचक्र के परिभ्रमण में आ जाता है, परन्तु जिस प्रकार राहु के सहयोग की इसमें आवश्यकता होती है, वह प्रायः संगति न होने के कारण जो भीषणता-जैसा रौद्र रूप इसमें होना चाहिये वह नहीं होता। इस बार के शकट भेदन में जो भीषणता है वह भयानक है। दुर्भाग्यवश राहु का सहयोग भी उसमें हो गया है और इसी के निकट लगे हुए 2-3 ग्रहणों का लगातार आ जाना तथा अक्टूबर में पाँच छः ग्रहों का समागम हो जाना असाधारण चिन्ताजनक वातावरण का उत्पादक है। इन योगों का परिणाम जगत भर में होगा, खास कर ग्रहणों का दुष्परिणाम तो विदेशों में ही अधिक होगा। रोहिणी शकट भेद संसार के लिये दुष्परिणामकारी है, इसलिये इसका फल तो ग्रहणों के साथ और भी अत्यन्त कटु हो जायगा।

खगोलिक परिवर्तनों के महान परिणाम प्रदर्शक आचार्य बाराहमिहिर तो इस महान कुयोग के लिए बारह साल तक बारिश न होने की भयानक बात कह डालते हैं और समस्त भूमंडल को राख की ढेरी से भरा, हड्डियों के पर्वतों से व्याप्त हो जाने की सूचना करते हैं। श्मशान की तरह जगत भर में औघड़ों का साम्राज्य हो जायगा, यह उनका अभिमत है। सागर अपनी मर्यादा को लाँघ कर प्रलयंकर बन जायगा। इस प्रकार इस दृष्टि से समुद्रों में अरबों समयों की सम्पत्ति समाप्त हो रही है और लाखों के प्राणों की जल समाधि भी। किन्तु यह तो केवल शनि के कारण ही होती रही है। जब शनि को लेकर यह रोहिणी शकट भेद योग आ रहा है, तब भविष्य कथन के लिये कल्पना की गति कुण्ठित ही समझिये। भीषणता के स्वरूप को समझना भी सहज संभव नहीं है।

अक्टूबर में जिस समय पाँच-छः ग्रहों की युति होने जा रही है, तब तक शायद भारतवासी बौद्धिक कल्पना तरंगों पर और इधर-उधर विहार कर लें किन्तु अक्टूबर से भारत में भी शिव का प्रलयंकर रौद्र रूप अकल्पित और आकस्मिक प्रकट होगा और उसकी लपटों से खून की नदियाँ, नर कंकालों के पर्वत और भस्म भार दबे हुए वैभवपूर्ण नगर प्रसाद फर जन पद हो जायं तो आश्चर्य का कारण ही नहीं। ज्योतिष की शास्त्रीयता पर अविश्वास रखने वाले अविश्वास को और भी दृढ़ करके भावी विधानों की इन पूर्व सूचनाओं को नोट कर रखें।

-ज्योतिर्विद् पं. सूर्यनारायण व्यास, उज्जैन।


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