परलोक गत आत्मा का सन्देश

September 1942

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(ले. श्री द.वा. विपट, गोहद।)

आपसे जुदा हुए हमें काफी समय हो चुका है, किन्तु एक भी दिन ऐसा नहीं जाता, जिस दिन आपकी याद न आती हो, याद आते ही हम आपके निकट पहुँच कर आपके दर्शन करते हैं, आपको आनन्दपूर्वक देख कर हमें संतोष होता है और दुःख देखकर कष्ट होता है, किन्तु हम दोनों समय भगवान् से प्रार्थना करते हैं कि आप के सुख में वृद्धि हो तथा कष्ट का क्षय हो, कितनी अचम्भे की बात है कि हम तो आपको देखने के इच्छुक होते है और अपने विचारों को कार्यरूप में परिणित करते हैं, किन्तु आप लोग हमको भूत कह कर पुकारते हो तथा हमारा प्रभाव आप पर न हो इस हेतु भगवान् से प्रार्थना करते हैं। क्या भगवान् आपका ही है, हमारा नहीं है। भाइयों ऐसा मत समझो भगवान् को जैसा आपका है, वैसा ही हमारा है। ईश्वर की कृपा से सारे जगत का ज्ञान हो सकता है, किन्तु यह बात कार्यरूप में परिणित पाने के लिये ईश्वर के अनुकूल कठिन तपस्या करना पड़ती है, तब गत बुरे संस्कार नष्ट होकर प्राणी सदैव ब्रह्मानन्द में मग्न रह सकता है, उसके आनन्द में ऐसा मस्त होता है, फिर आपकी याद आ ही नहीं सकती न शुभ संदेश देने की आवश्यकता प्रतीत होती है। हमारे संस्कार अभी उतने ऊंचे न होने के कारण भी आपको यह संदेश दिया जा रहा है और साथ में यह भी बताया जाता है कि आप लोग जैसे हमको भूत समझ कर दूर रहना चाहते हैं, उसी प्रकार हम भी आप से दूर रहना चाहते हैं, क्योंकि अपना ही मुख तो काँच में दीख सकता हैं, किन्तु विश्व प्रेम कहता है कि किसी डर की आशंका से ऐसा करना उचित नहीं हो सकता। इससे तो अपनी कमजोरी प्रतीत होती है। ब्रह्मचारी लोगों को गृहस्थ-स्थिति का क्या अनुभव हो सकता है, जिसने शक्कर खाई न हो, वह उसका स्वाद कैसे वर्णन कर सकता है और शक्कर का छोड़ना, उसका सही क्योंकर कहा या जा सकता है। तात्पर्य यह है कि वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति के हेतु परमेश्वर ने जीव का संग पकड़ लिया, उसी प्रकार जीवात्मा को चाहिये कि वह सदैव यह समझे कि मैं परमेश्वर के साथ हूँ और वह हमेशा मेरे साथ हैं। मेरा हर कार्य वह देखता है किन्तु किसी भी कार्य में हस्तक्षेप नहीं करता। जीव जैसा कार्य करता है, उसका फल उसे मिलता रहता है। भाइयों! गुरु महाराज ने दिया हुआ समय पूर्ण होने को है, उससे अधिक मैं ठहर नहीं सकता। आपने मुझ पर बड़ी कृपा की, इसमें वृद्धि होती रहे, इस शुभ कामना के साथ संदेश को सम्पूर्ण करता हूँ।


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