काँग्रेस के मद्रास अधिवेशन में सम्मिलित होने के लिए श्री महादेव गोविन्द रानाडे रेल के फर्स्ट क्लास में जा रहे थे। आगे शोलापुर स्टेशन पर वे अपना सामान वहीं छोड़ कर पास के डिब्बे में डॉक्टर भाण्डारकर से बातचीत करने चले गये। इसी समय एक अंग्रेज आया। फर्स्ट क्लास में एक हिन्दुस्तानी का सामान देख कर साहब बहादुर ने उसे फौरन उठवा कर नीचे फिंकवा दिया और खुद उस डिब्बे में बैठ गया।
माननीय रानाडे को इसका पता चला, तो उनने लाचार होकर अपना सामान डॉक्टर भाण्डारकर के डिब्बे में रखवा लिया और जगह की कमी के कारण रात को बड़े कष्ट के साथ गुजारा।
दूसरे दिन यह घटना माननीय गोपाल कृष्ण गोखले को मालूम हुई, उन्हें यह बहुत बुरा लगा। उन्होंने रानाडे जी से कहा आप हाई कोर्ट के चीफ जज हैं, एक मामूली अंग्रेज का ऐसा अभद्र व्यवहार आपको सहन नहीं करना चाहिए। सरकार से उसके खिलाफ लिखा पढ़ी करके आप सहज ही उसे सजा दिला सकते हैं। इस पर रानाडेजी ने कहा- मि. गोखले, वास्तव में हम भारतीय इसी के अधिकारी हैं कि हमारे बड़े से बड़े व्यक्ति के साथ विदेशी लोग ऐसा ही अपमानजनक बर्ताव करें। आप देखते नहीं कि हमारे देश में हम उच्च वर्ण के लोग अछूतों के साथ कैसा मनुष्यता से रहित बर्ताव करते हैं। जब हम एक जाति के और एक सी पराधीन स्थिति के लोग आपस में पशुता का व्यवहार करते हैं, तो भिन्न जाति और भिन्न स्थिति के लोग हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करें तो क्या अनुचित है? अपने देश की आसुरी अस्पृश्यता का, स्मरण आने पर माननीय गोखले का सिर लज्जा से नीचा हो गया।
सर जगदीश चन्द्र बोस-