ढोंगी दुनिया

September 1942

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(महात्मा टॉलस्टाय की डायरी)

जिस प्रकार मेरा जीवन व्यतीत हुआ है, उसी प्रकार अन्य बहुत से मनुष्यों का भी हुआ होगा। मैं हृदय से इस बात की खोज में था कि मैं नेक तथा अच्छा मनुष्य बनूँ किन्तु मैं युवावस्था तथा विषय−वासनाओं के आधीन था। जब मैंने दूसरों को अपने नेक बनने की हार्दिक इच्छा प्रकट की तो लोगों ने मेरी हँसी उड़ाई और मुझको घृणा की दृष्टि से देखा। किन्तु जब मैंने पाशविक वृत्तियाँ प्रकट की तो लोगों ने मेरी प्रशंसा की। मैंने साँसारिक वासनाओं विषयभोग, क्रोध, घमंड, बदला आदि का बड़ा मान देखा। जब मैंने इस विषय में अपने पूर्वजों का अनुकरण किया तो मुझे प्रतीत हुआ कि लोग मुझ से प्रसन्न हैं और मैं कोई नई या अनोखी बात नहीं कर रहा हूँ। मेरी चाची जो वास्तव में बड़ी नाजुक महिला थीं, मुझ से कहा करती थी कि मैं तुम्हारी भलाई के लिये सब से अधिक इस बात की इच्छुक हूँ कि तुम्हारा किसी विवाहित स्त्री से अनुचित सम्बन्ध हो जाय। जब मैं अपने जीवन भर के उस समय पर दृष्टि डालता हूँ तो मुझे बड़ा कष्ट तथा अत्यन्त घृणा होती है। मैंने युद्धों में नर हत्या की, जुआ खेला, दुराचारिणी स्त्रियों से सम्बन्ध रखा, लोगों को धोखा दिया, मिथ्या भाषण, लूट-मार मद्य पान, निर्दयता आदि सब कुछ किया, शायद ही संसार का कोई ऐसा बुरा कर्म होगा जो मुझसे बचा होगा। इस पर भी मैं दूसरे मनुष्यों की दृष्टि में भद्र समझा जाता था।


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