करनी का फल

September 1942

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(डॉ. शिवरत्नलालजी त्रिपाठी, गोला गोकरननाथ)

गोला गोकरननाथ से चार मील दूरी पर एक ऐसे पुरुष रहते हैं, जो पूरे कानून के पुतले हैं। पढ़े-लिखे तो नाम मात्र के हैं, पर वकील भी उनकी कानून दानी से घबराते हैं। जन्म भर यही काम रहा कि चलते-फिरते लोगों को फँसा देना, झूठा मुकदमा कायम करा देना, जाली कागजात लिखवा देना इत्यादि। फलस्वरूप पिछले साल इनकी स्त्री गत हो गई। भाई मर गया, लड़के का एक पैर काट डाला गया, सम्पत्ति नष्ट हो गई, वे इस समय महान दुःखी जीवन व्यतीत करते हुए, यह कहावत चरितार्थ कर रहे हैं:-

“जो काहू कलपाइ है, सो कैसे कल पाहि।”

(2)

मेरे एक मित्र ने मुझ से अपनी राम कहानी कही कि-”लड़कपन में मेरी शादी एक अच्छे खानदान में सुशील कन्या के साथ हुई थी। मैंने उसकी कदर न करके उसे त्याग दिया। फिर मेरा दूसरा विवाह भी न हुआ। अन्त में एक बदसूरत नाक कटी स्त्री मिली। अब उसके तीन लड़के तथा एक लड़की है, मगर वह अब भी किसी सूरत में भी मेरे काबू में नहीं आती है। न लड़कों को पढ़ने के लिए जाने देती है न किसी मेहमान को घर में दाखिल होने देती है। मैं सख्त परेशान हूँ, न दिन को चैन न रात को। कभी-कभी तो खुदकुशी करने की इच्छा होती है, पर यही सोच कर रुक जाता हूँ कि पूर्व पत्नी को निर्दोष होते हुए भी त्याग देने का ईश्वर मुझे दण्ड दे रहे हैं। मुझे यह भोगना ही पड़ेगा।”


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