करुणाकर की करुणा

September 1942

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री धर्मपाल सिंहजी, रुड़की)

ता0 9 अगस्त को तमाम रात बड़े जोर की वर्षा होती रही, जिसमें बहुत से मकान गिर गये। मेरा अभी कुछ जीवन शेष रह गया था, यह ईश्वर की मर्जी है, वह प्रत्येक घटना द्वारा अपना प्रेम सौंप रहे हैं। उन्होंने मुझे यह नसीहत की थी-अभागों! देख, जीवन क्षणभंगुर है। दुनिया में न भूल। मेरी तरफ ध्यान दे। मैं वास्तव में उनको भूल जाता हूँ, पर वे करुणाकर, वे दीनानाथ-सर्वव्यापक, हरदम, हर घड़ी परछांई की भाँति रक्षा कर रहे हैं।

यहाँ से ग्राम जाते समय एक बरसाती नाला पड़ता है। उसमें पानी कुछ विशेष नहीं होता, पर इस लगातार वर्षा के कारण पानी कई फर्लांग की चौड़ाई में चल रहा था। प्रथम तो मेरा मन वापस लौटने को करने लगा, फिर बच्चों को देखने के लिए पार उतरना सोचा। घाट से एक फर्लांग नीचे जहाँ नाला बहुत चौड़ा था, उतरने के लिए गया। अचानक एक बहुत गहरे गड्ढे में मेरा पाँव फिसला और साथ ही मैं नीचे गहरे गर्त्त में चला गया। पानी की धार तेज थी और गहराई बहुत अधिक। मैं डूब गया और पानी पीने लगा। इस सुनसान में सर्वथा अकेला था, वर्षा हो रही थी। मैं डूबा-डूबा अनुभव कर रहा था कि, अब जीवन समाप्त है-भगवान् याद आये। चन्द मिनट में कुछ सुध−बुध न रही और मैं डूब गया।

थोड़ी देर बाद मैं अचानक अपने आप को किनारे पर पड़ा देखता हूँ। गहरे पानी में से निकाल कर इस प्रकार सुरक्षित रूप से मुझे कौन इस प्रकार सुरक्षित रूप से मुझे कौन रख गया? इसका उत्तर मैं क्या दूँ? अपरम्पार महिमामय परमात्मा की करुणामय कृपा का ही यह एक चमत्कार अनुभव करता हूँ।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118