क्रोध से विक्षुब्ध होने पर दांतों को पीस, पैरों को पटक तथा शरीर को कम्पित कर अपनी आत्मा को शाँति देने का प्रयास शाँति नहीं है, क्रोध का संताप है। उनके लिये उदारता ही प्रशान्त सागर है, जो अशुद्ध जल को भी अपने में मिलाकर शुद्ध कर देता है।
-स्वामी रामतीर्थ।