स्वर्ग का सच्चा अधिकारी (Kahani)

February 1999

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अत्रि ऋषि के आश्रम में ज्ञानचर्चा चल रही थी। एक जिज्ञासु ने कहा- भक्तजन भगवान का दर्शन पाने, उनके निकट पहुँचने का प्रयत्न करते हैं, फिर शबरी में ऐसी क्या विशेषता है, जिसके कारण भगवान न केवल उसके घर पहुँचे, वरन् मान बढ़ाने के लिए उसके जूठे बेर भी माँग-माँगकर खा लिये?

अत्रि ऋषि ने कहा- शबरी भक्त ही नहीं सन्त भी है। वह रात्रि में भजन और दिन में परमार्थ कर्मों में निरत रहती है। मातंग ऋषि के आश्रमवासियों के वेत्रवती नदी तक पहुँचने का कँटीला मार्ग उसी ने झाड़ियों से रहित किया और नित्य ही उस मार्ग की सफाई भी की। भगवान ऐसे भक्तों को सम्मान देने स्वयं उनके घर पहुँचते हैं।

वैष्णव सम्प्रदाय के आचार्य सन्त रामानुज को गुरु-मन्त्र देते हुए, उनके गुरु ने सावधान किया-मन्त्र को गोपनीय रखना। सन्त रामानुज मन्त्र जप के साथ ही विचार करने लगे-यह अमोघ मन्त्र मृत्युलोक की संजीवनी है। यह जन-जन की मुक्ति का साधन बन सकता है, तो गुप्त क्यों रहे? उन्होंने गुरु की अवज्ञा करके मन्त्र सभी को बता दिया। एक स्थान पर अपने शिष्य को सामूहिक पाठ करते हुए सुना, तो वे क्रुद्ध हो गए, “रामानुज, तूने गोपनीय मन्त्र को प्रकट कर पाप अर्जित किया है। तू नर्कगामी होगा।” रामानुज ने गुरु के चरण पकड़ लिए-देव जिन्हें मैंने मन्त्र बताया है, क्या वे भी नर्कगामी होंगे?” गुरु ने कहा-नहीं वे तो मृत्युलोक के आवागमन से मुक्त हो जायेंगे। उन्हें तो पुण्य लाभ ही होगा।”

रामानुज के मुख-मण्डल पर संतोष की आभा चमक उठी, “यदि इतने लोग मन्त्र के प्रभाव से मोक्ष प्राप्त करेंगे, तो मैं स्वयं के लिए शतयोनि में नरक-गमन स्वीकार कर लूँगा।” अपने शिष्य के यह वचन सुनकर गुरु मुग्ध हो उठे। उन्होंने कहा-ऐसी भावना रखने वाला तो स्वर्ग का सर्वोच्च अधिकारी ही होता है।”


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