युगपुरुष की लेखनी से - पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वांग्मय अमृत कलश

February 1999

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1- युगद्रष्टा का जीवन-दर्शन

गायत्री परिवार के अधिष्ठाता वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने गायत्री महामंत्र की स्वयं साधना किस प्रकार की तथा किस तरह से गायत्री महामंत्र को विश्व स्तर तक प्रतिष्ठापित किया, इसके लिए आप पढ़ना चाहेंगे-

आचार्यजी की जीवन साधना के अंतरंग पक्ष, उनके दृश्य जीवन की अदृश्य अनुभूतियाँ, चमत्कारों से भरा जीवनक्रम।

बीज का गलकर वटवृक्ष बनने की प्रक्रिया, 15 वर्ष की आयु में गुरुसत्ता से साक्षत्कार, किशोरावस्था के हृदयस्पर्शी प्रसंग।

स्वतंत्रता संग्राम में सत्याग्रही के रूप में ‘श्रीराम मत्त’ का योगदान, ‘सैनिक’ पत्र के माध्यम से उनकी काव्य रचना।

चौबीस-चौबीस लाख के चौबीस महापुरश्चरणों की पूर्णाहुति, गायत्री तपोभूमि की स्थापना, प्रथम सहस्रकुण्डीय महायज्ञ।

आर्ष साहित्य का नवसृजन, नारी जागरण अभियान, जीवन-निर्माण संबंधी सत्रों का संचालन।

मथुरा से विदाई, उनका अज्ञातवास, हिमालय यात्राएँ।

आचार्य जी के बहुआयामी व्यक्तित्व के अनछुए अगणित पहलू, युगव्यास का साहित्य दर्शन, वांग्मय विषयवस्तु।

2- जीवन देवता की साधना-आराधना

मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। जीवन-साधना का दर्शन यदि ठीक तरह से समझ में आ जाय व सही प्रयोग का अभ्यास बन जाय तो मनुष्य अनेकानेक उपलब्धियाँ सहज ही इसी जीवन में पा सकता है। कृपया पढ़े-

जीवन साधना-आराधना चेतना का उदात्तीकरण। आत्मशोधन, आदतों का परिशोधन, सविता की ध्यान-धारण

चिंतन-पद्धति आरोग्य, प्राणशक्ति, चरित्र, इच्छाशक्ति।

‘स्व’ का विकास, वसुधैव कुटुम्बकम्, शिष्टता और शालीनता।

निकृष्टता से उबरें, महानता वरण करें।

जीवन साधना-चौदह सूत्र; आत्मपरिष्कार, परब्रह्म की प्राप्ति।

व्यक्ति, परिवार एवं समाज का निर्माण, आत्मोत्कर्ष में बाधाएँ।

शक्ति संचय के सूत्र, शक्ति का अपव्यय कैसे रोकें?

जीवन-लक्ष्य चेतना को प्रखर-परिष्कृत बनाना।

मानव जीवन एक कल्पवृक्ष, वाक्शक्ति-दिव्य विभूति।

श्रद्धा की सामर्थ्य, ब्रह्मविद्या, सिद्धि के सिद्धांत।

अमृत, पारस और कल्पवृक्ष की प्राप्ति।

लोक आराधना की आवश्यकता और उसका स्वरूप-सेवाधर्म

उपासना-समर्पण योग

जीवन की अन्यान्य आवश्यकताओं की तरह ही उपासना भी आत्मा की एक अनिवार्य आवश्यकता है। निष्काम भाव से की गई उपासना भगवत् अनुकंपा का पात्र बनाती है। इसमें पढ़ें और पाएँ-

उपासना एक अनिवार्य आवश्यकता, उपासना फलवती कैसे हो? उपासना करें तो इस तरह। उपासना के साथ भावना भी।

उपासना की महत्ता एवं विधि-व्यवस्था-षट्कर्म के उद्देश्य, प्रतीक पूजा का औचित्य, जप और ध्यान का विज्ञान।

विशिष्ट उपासना अर्थात् ईश्वर के पास बैठना, जीवन-शोधन

ब्रह्मसंध्या और उसके मंत्र, उपासना संबंधी भ्रांतियों का निवारण।

ब्रह्मप्राप्ति की साधना, योग और तप का तत्त्वज्ञान।

पात्रता का विकास, पात्रता के अनुरूप ही अनुदान। सूक्ष्म वातावरण का परिशोधन सामूहिक उपासना द्वारा।

महाप्रज्ञा का युगशक्ति के रूप में अरुणोदय।

समर्थ बनें-समर्थों का आश्रय लें। दीक्षा की प्रक्रिया, व्यवस्था।

गायत्री उपासना द्वारा मनुष्य जीवन की सार्थकता।

आत्मा की अनंत शक्ति, आत्म-कल्याण का राजमार्ग।

4-साधना पद्धतियों का ज्ञान और विज्ञान

योगदर्शन एक विशुद्ध विज्ञान है। पतंजलि ऋषि ने योग-विज्ञान के आठ अंग बताये हैं। इस साधना-विज्ञान के सभी पक्षों पर विस्तार से इस खण्ड में विवेचन हुआ है।

योगः कर्मसु कौशलम्, योग का उद्देश्य-चित्तवृत्ति का निरोध।

योग द्वारा आत्मसाक्षात्कार, क्रियायोग, बहिरंग-अंतरंग योग।

योगसाधना के चमत्कारी परिणाम, पात्रता संबंधी अनुशासन।

याग बाजीगरी नहीं उच्चस्तरीय पुरुषार्थ, हठयोग लाभदायक भी, हानिकारक भी।

योग संबंधी भ्रांतियों से उबरें, योग और मेडीटेशन का कौतुक।

विदेशों में योग प्रचार बचकाना खिलवाड़ न बनाया जाय।

योग के प्रति विश्व का आकर्षण और हमारा दायित्व।

महर्षि अरविन्द का पूर्णयोग, पातंजलि योग का तत्त्वदर्शन।

यम और नियम, दमन अपने आपे का, अपरिग्रही जीवन।

गृहस्थ में तपश्चर्या का विधान, विवाहित जीवन-मर्यादाएँ सुसंतति का उपहार। जिह्वा के संयम से स्वास्थ्य-सिद्धि

मरणं बिन्दु पातेन जीवनं बिंदु धारणात्-संयमी आत्मजयी।

प्राणशक्ति संवर्द्धन हेतु शुद्ध और सात्विक भोजन।

अष्टांग योग-उपयोगी आसन, श्रम-विश्राम का संतुलन।

पूज्यवर ने अपने सभी मानसपुत्रों, अनुयायियों के लिए मार्गदर्शन एवं विरासत में जो कुछ लिखा है- वह अलभ्य ज्ञानामृत (पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वांग्मय सत्तर खण्डों में) अपने घर में स्थापित करना ही चाहिए। यदि आपको भगवान ने सम्पन्नता दी है, तो ज्ञानदान कर पुण्य अर्जित करें। विशिष्ट अवसरों एवं पूर्वजों की स्मृति में पूज्यवर का वांग्मय विद्यालयों, पुस्तकालयों में स्थापित कराएँ। आपका यह ज्ञानदान आने वाली पीढ़ियों तक को सन्मार्ग पर चलाएगा, जो भी इसे पढ़ेगा धन्य होगा।

5-साधना से सिद्धि-1

साधना से सिद्धि प्राप्त होती है। अपनी चंचल चित्तवृत्तियों को साध लेना ही साधना है। इसमें मन का संयम और कषाय-कल्मषों से मुक्ति आवश्यक है-

व्यक्तित्व सुसंस्कारित बनें, साधना विज्ञान की पृष्ठभूमि।

साधना से सिद्धि का मर्म, साधना-समर बनाम जीवन-संग्राम

अंतःकरण चतुष्टय और साधना विज्ञान।

साधना से आत्मिक प्रखरता, संकल्प-शक्ति की अभिवृद्धि।

ईश्वर प्राप्ति के वेदोक्त साधन, साध्य-साधना-साधक

ईश्वरं प्राप्ति के वेदोक्त साधन, साध्य-साधना-साधक

साधनाएँ फलीभूत क्यों नहीं होती, निष्काम साधना।

हिमालय की छाया, गंगा की गोद में ब्रह्मवर्चस साधना।

सफल साधना हेतु उपयुक्त वातावरण, गुरु निर्देश से साधना।

खाद्य पदार्थों की कारण-शक्ति उपवास साधना, आहार-शुद्धि लोक लोकांतरों की यात्रा।

साधना से सूक्ष्म शरीर का विकास-विस्तार

छाया पुरुष मात्र दिवा स्वप्न नहीं-एक सत्य।

अमर आत्माओं का रहस्य, तिब्बत के लामा योगी, हवा में महल, आधी रात में सूर्य, एक शरीर यहाँ भी-वहाँ भी।

6-साधना से सिद्धि-2

मानव-जीवन असंख्य सम्भावनाओं से भरा-पूरा है, पर यह लाभ तब ही मिलता है जब इसे ठीक तरह से सँवारा जाय, संभाला जाय। यह ज्ञान और योग से सम्भव है, पढ़ें-

निर्विकार आत्मा, माता का सूक्ष्म स्वरूप, साधना और सिद्धि।

सत्पात्र पर ही दैवी अनुदान। भिन्न-भिन्न प्रकार की दीक्षाएँ।

योग-प्रसुप्त से जागृति का उच्चस्तरीय विज्ञान।

साधना में बाधक-संचित दुष्कर्म, पाप प्रायश्चित के तप-व्रत; इंद्रियाँ आत्मा की शत्रु नहीं सेवक।

स्थूल से अधिक शक्ति सूक्ष्म में, आनंद और उल्लास का अजस्र निर्झर कारण शरीर, उसकी दिव्य विभूतियाँ।

स्थूल शरीर पर ध्वनि प्रयोग, स्थूल और सूक्ष्म शरीर का समन्वय।

ब्रह्मवर्चस की योगाभ्यास साधना-ध्यान-धारणा नादानुसंधान, अंतःत्राटक, प्राणयोग, मुद्रासिद्धि।

अन्नमय, मनोमय, प्राणमय, विज्ञानमय तथा आनन्दमय कोषों के जागरण का व्यावहारिक स्वरूप।

सूक्ष्म शरीर की सक्रियता शक्तिचालिनी, शिथिलीकरण तथा खेचरीमुद्रा से।

7-प्रसुप्ति से जागृति की ओर

साधना-संयम उपासना और भविष्य-निर्माण की आराधना, इन तीन पक्षों पर टिका हुआ है जागृति का विज्ञान। इसमें व्यक्तित्व को परिष्कृत कर ऊर्ध्वगमन की प्रक्रिया योग त्रयी द्वारा सम्पन्न की जा सकती है, पढ़-

चांद्रायण साधना, प्रायश्चित का अति महत्वपूर्ण पथ क्षतिपूर्ति।

हम निष्पाप बनें, अगला जन्म पछतावा न बने।

प्राण प्रत्यावर्तन, कल्प साधना, व्यक्तित्व परिष्कार।

गायत्री योग साधना-प्रणव अथवा ब्रह्मयोग, कुण्डलिनी, षट्चक्रों का जागरण, आत्मोत्कर्ष का राजमार्ग-तप-तितिक्षा

स्वरयोग से दिव्यज्ञान, वीर्य रक्षक प्राणायाम, मौन व्रत, सारस्वत योग।

आत्म जागरण, आत्म निरीक्षण, रस-गंध-स्पर्श साधना।

सत्य योग, श्रमयोग, पर्यवेक्षण योग की साधना।

सीस दिये जो गुरु मिले तो भी सस्ता जान।

दिव्य शक्तियों के हस्तांतरण की प्रक्रिया-शक्तिपात।

8-ईश्वर कौन है? कहाँ है? कैसा है?

जिस चेतना शक्ति से यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड संव्याप्त है- उस परमशक्ति को हम ईश्वर कहते हैं। वह शक्ति स्वयं सर्वसमर्थ है तथा अजर और अमर है। इस ईश्वर का क्या साक्षात्कार सम्भव है? इस गूढ़ रहस्य को समझने के लिए आप पढ़ें-

सर्वोत्कृष्ट दर्शन-आस्तिकवाद आत्मा परमात्मा का संबंध।

ब्राह्मी चेतना, परमात्म सत्ता का विलक्षण प्रमाण।

आत्म समर्पण द्वारा प्रभु प्राप्ति, अधर्म की जननी-नास्तिकता

ईश्वर और उसका अस्तित्व, उसका साक्षात्कार; कामनाओं की पूर्ति या निवृत्ति; प्रतीकोपासना का मनोविज्ञान।

जप की अवधि में दस निषेध; ज्ञान-कर्म और भक्ति।

प्रकाश की ओर ही चलें, युग साधना का अभिनव निर्धारण।

ईश्वर विश्वास क्यों? किसलिए? अपनी तुच्छता भी जानें।

ईश्वर है या नहीं? ईश्वरवाद का विश्लेषण।

श्रेय और प्रेय पथ के परिणाम, निष्काम भक्ति में दुहरा लाभ।

नास्तिक भी उपासना करें, पूजा एवं ध्यान योग का मर्म।

विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व, उसका नियंत्रण न तोड़े।

ईश्वर प्राप्ति का सच्चा मार्ग, ईश्वर और उसकी अनुभूति।

भक्तियोग का व्यवहारिक स्वरूप।


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