भगवान बुद्ध एक रात्रि प्रवचन कर रहे थे। प्रवचन सुनने के लिए बैठा हुआ व्यक्ति बार-बार नींद के झोंके ले रहा था। तथागत ने उस ऊँघते हुए व्यक्ति को कहा- वत्स सोते हो। नहीं भगवन्- हड़बड़ाकर ऊँघते हुए व्यक्ति ने कहा। प्रवचन पूर्ववत् चालू हो गया और उक्त श्रोता भी पहले की तरह ऊँघने लगा। भगवान बुद्ध ने तीन-चार बार उसे जगाया, परन्तु वह ‘नहीं भगवन्’ कहता और फिर सो जाता। अन्तिम बार तथागत ने पूछा-वत्स जीवित हो! नहीं भगवन्! सदा की तरह उत्तर दिया श्रोता ने। श्रोताओं में हँसी की लहर दौड़ गयी। भगवान बुद्ध भी मुसकराये, फिर गम्भीर होकर बोले- वत्स निद्रा में तुमसे सही उत्तर निकल गया। जो निद्रा में है, वह मृतक समान है। जब तक हम विवेक और प्रज्ञा में नहीं जागते हैं, तब तक हम मृतक के ही समान हैं।