अद्भुत ग्रहयोग-अनूठा पुरुषार्थ

February 1999

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इस समय सारा विश्व परिवर्तन के तूफानी दौर से गुजर रहा है। इसमें एक ओर जहाँ विध्वंस की गगनचुम्बी लपटें सारी मानवजाति को झुलसा रही हैं, वही सृजन के शीतल झोंके भी जोर पकड़ रहे हैं, किन्तु अभी विध्वंस का ही पलड़ा भारी प्रतीत होता है, हालाँकि वह अपनी अन्तिम साँसें गिन रहा है और हारती बाजी को जीतने के लिए अपनी समूची शक्ति दाँव पर लगा रहा है। हम बीसवीं सदी के ही नहीं, दूसरी सहस्राब्दी के भी अन्तिम दौर से गुजर रहे हैं। प्रथम सहस्राब्दी के अन्तिम वर्ष भी भारी विपत्तियों एवं उथल-पुथल से भरे रहे थे। काल के इसी क्रम में वर्ष 1999 भी परिवर्तन की विशेष सम्भावनाओं के साथ आया है। ऐसा भविष्य के गर्भ से झाँकने वाली सारी विधाओं एवं उनके विशेषज्ञों का मत है।

युगपरिवर्तन आन्दोलन का ताना-बाना बुनने वाले महाकाल के अग्रदूत परमपूज्य गुरुदेव ने आज से 30 वर्ष पूर्व ही जनवरी, 1969 की अखण्ड-ज्योति के पृष्ठों में ‘वसन्त पंचमी हमारा प्रधान पर्व’ शीर्षक से घोषणा की थी ‘अब से तीस वर्ष बाद युगपरिवर्तन का स्पष्ट स्वरूप अपनी झलक-झाँकी दिखाने लगेगा।’ उक्त भविष्यवाणी

1999 में होने वाली सम्भावित उथल-पुथल के संदर्भ में ही है। दिल्ली से प्रकाशित होने वाली ज्योतिष विद्या की मासिक पत्रिका ‘टाइम्स ऑफ एस्ट्रालॉजी’ ने अपनी ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर वर्ष 1999 के अद्भुत ग्रहयोग पर प्रकाश डाला है। सम्पादक महोदय के अनुसार यह ग्रहयोग वर्ष 1999 की वसन्त पंचमी से प्रारम्भ हो चुका है। पत्रिका के अनुसार संक्रमणकाल के इस दौर में ऐसा विध्वंस योग समूची मानवजाति को विश्वयुद्ध की आग में झोंक सकता है। परमाणु अस्त्रों से भरे विश्व में ऐसे युद्ध की सर्वसंहारक स्थिति को मात्र दैवी हस्तक्षेप ही किसी छोटी घटना के रूप में टाल सकता है।

एक अन्य ज्योतिर्विद् ने भी अपनी गणनाओं के आधार पर इस अद्भुत ग्रहयोग की पुष्टि की है। उनके अनुसार इस भयावह स्थिति का बीजारोपण 13 जनवरी, 1999 से ही हो चुका है। यह स्थिति 13 जनवरी, 1999 से लेकर 15 अगस्त, 2000 तक रहेगी, क्योंकि तब तक मंगल तुला राशि तथा शनि मेष राशि पर रहेंगे। यह महासंक्रमण काल 13 जनवरी, 1999 से 15 अगस्त, 2000 तक ही है।

इसके पश्चात् शान्ति का वातावरण बनेगा, जिसमें भारत मूर्धन्य रहेगा।

भारत के सुप्रसिद्ध ज्योतिष-विज्ञानी प्रो. बी.वी. रमण ने हाल ही में एक पुस्तक प्रकाशित की है ‘नो वर्ल्ड वार इन 2001 ए.डी.। उनका ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर कहना है कि पृथ्वी के नष्ट होने की संभावना यद्यपि कम नहीं है, फिर भी विश्व स्तर पर ऐसे आध्यात्मिक प्रयास होंगे, जो मानवता को तीसरे विश्वयुद्ध की आग से बचाए रखेंगे। लेखक का मानना है कि भविष्य में होने वाले युद्धों की सीमाएँ और संभावनाएँ खाड़ी युद्धों से अधिक नहीं होंगी। 28 मई, 2000 से ऐसी सम्भावनाओं की प्रबलता बढ़ेगी, जो विश्व शाँति, सद्भावना एवं एकता के किसी नए आयाम को जन्म दें। इस प्रकार इक्कीसवीं सदी का आरम्भ समूची दुनिया में शान्ति और सद्भावना का नया युग लेकर आएगा।

भारत के प्राचीन ऋषियों के भविष्य कथन सम्बन्धी अन्वेषणों-अनुसंधानों में भृगुसंहिता का स्थान अद्वितीय है। इसके विशेषज्ञों के अनुसार मेष राशि में शनि और बृहस्पति की युति पूरे विश्व इतिहास पर प्रभाव डालती है। यह ग्रहदशा 28 मई, 2000 को पड़ेगी। इसके बाद भारत अधिक ताकतवर होता जाएगा। भारत की कुण्डली में छठा स्थान गुप्त शक्तियों का है। इसी से पुनरुत्थान, नये फैसले और नए बदलाव होते हैं। आगामी कुछ वर्षों में ही देश के प्रशासन में आमूल-चूल रूप से क्रान्तिकारी बदलाव आएगा। पूरा देश किसी एक मिशन को लेकर काम करेगा, साथ ही प्राचीन भारतीय चिन्तन को बढ़ावा मिलेगा।

चर्चित कन्नड़ पत्रिका ‘तरंग’ में प्रकाशित भविष्यवाणी के अनुसार 7 मई, सन् 2000 को ब्रह्माण्ड के आठ ग्रहों के एक साथ मिलने की सम्भावना है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस मिलन के परिणाम काफी व्यापक परिवर्तन लाने वाले होंगे। विश्व के प्रख्यात ज्योतिषविदों के अनुसार 8 मई, 2000 को एक अद्भुत एवं महत्वपूर्ण घटना घटना वाली है। ज्योतिषाचार्यों की मान्यता है कि उस दिन पृथ्वी के एक तरफ सभी ग्रह सीधे एक पंक्ति में आ जाएँगे। मंगल को छोड़कर सभी ग्रहों की एक ही राशि मेष में युति होगी। शुक्र के अतिरिक्त समस्त ग्रह सूर्य से अस्त होंगे। पाँच ग्रह एक ही नक्षत्र भरणी में स्थित हो रहे हैं। गुरु व शनि की दीप्तांश के भीतर ही युति होगी। सभी ग्रह राहु व केतु के रेखांश के भीतर आएँगे।

इन सभी ग्रहों के पृथ्वी के एक सीध में आ जाने से सबकी समन्वित गुरुत्वाकर्षण शक्ति से पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुव का स्थान परिवर्तन होने की सम्भावना बनती है। इसी दिन काल सर्प का योग विश्व को महापरिवर्तन की ओर मोड़ सकता है। 4 मई, 2000 को नीच के शनि की गुरु से युति दीप्तांश के अन्दर हो रही है। यह युति भारत में आध्यात्मिक क्षेत्र में एक बड़ी क्रान्ति का सृजन करेगी। इसके परिणामस्वरूप भारत विश्व का धार्मिक तथा आध्यात्मिक नेतृत्व करेगा। इस दिन मेष में सभी ग्रहों की युति शून्य अंश पर नहीं होने के बावजूद यह प्रभाव एक नये युग का सूत्रपात करेगा।

भविष्यवक्ता एडगर केसी ने बहुत पहले ही सन् 2000 के आस-पास विश्व के भौगोलिक परिवर्तन की भविष्यवाणी की थी। अमेरिकी भविष्यवक्ता रुथ माण्टगुमरी ने भी लिखा था कि सन् 2000 तक पृथ्वी की धुरी में बदलाव आने से सम्पूर्ण विश्व का वायुमण्डल एवं मौसम परिवर्तित हो सकता है। विश्व के प्रायः सभी भविष्यवक्ताओं ने एक स्वर से 1999 से 2000 के आस-पास युगपरिवर्तन की ध्वंस एवं सृजन की द्विपक्षीय प्रक्रिया के निर्णायक दौर की चर्चा की है, इनमें नोस्ट्राडेमस सबसे चर्चित नाम है।

15वीं शताब्दी में फ्राँस के महान भविष्यवक्ता नोस्ट्राडेमस ने आगामी 6000 वर्षों के सम्बन्ध में प्रायः 1000 भविष्यवाणियाँ की थीं, जो अब तक कालक्रम की कसौटी पर सत्य सिद्ध होती आ रही हैं। 20वीं शताब्दी का सर्वाधिक उल्लेख करने वाले इस महान भविष्यद्रष्टा ने लिखा है- 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में विज्ञान का विकास इतना अधिक हो जाएगा कि अधिकाँश दुनिया नास्तिक हो जाएगी। सामाजिक आचार-विचार कुंठित हो जाएँगे। चरित्र नाम की कोई चीज शेष नहीं रह जाएगी। घरों में नाममात्र को रहने वाले रह जाएँगे। अधिकाँश इधर-उधर घूमने वाले और गलियों में भोजन करने वाले हो जाएँगे।

प्रकृति को इतना क्रुद्ध कभी नहीं देखा जाएगा, जितना कि 20वी शताब्दी के अन्त में देखा जाएगा। जल के स्थान पर पृथ्वी, पृथ्वी के स्थान पर जलप्रलय जैसी स्थिति बनकर सामने आएगी। कहीं अतिवृष्टि, कहीं अनावृष्टि, तो कहीं ज्वालामुखी के भयंकर दृश्य प्रस्तुत होंगे। स्थान-स्थान पर सैनिक क्रांतियाँ होंगी। सन् 1999 में भारी उथल-पुथल होगी। इस अवधि में एक भयानक महायुद्ध की सम्भावना भी बनती है। इस संकट और चुनौती भरे कालखण्ड में एक नयी आध्यात्मिक चेतना का उदय होगा। इसके प्रभाव से संहार की संभावनाएँ समाप्त होंगी और नये युग का सूत्रपात होगा, जिसे नोस्ट्राडेमस ने ‘एज ऑफ ट्रुथ’ (सत्ययुग) का नाम दिया है। उनके अनुसार एण्टी क्राइस्ट अर्थात् मानवी दुर्बुद्धि से विश्व सभ्यता नष्ट नहीं होगी। अपनी काव्यात्मक भाषा में वे यह भी लिखते हैं कि 20वीं सदी के उपरान्त उस देश का वर्चस्व होगा, जिसकी सीमा तीन ओर से सागर से घिरी हुई है और जहाँ गुरुवार पवित्र दिन माना जाता है।

अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति संस्थान ‘गोल्डन पाथ’ की संस्थापिका श्रीमती आयरीन एक प्रामाणिक भविष्यवक्ता मानी जाती हैं। वे ध्यान की गहराइयों में भविष्य की सम्भावित घटना का दर्शन करती हैं। वे तृतीय विश्वयुद्ध की सुनिश्चित सम्भावना व्यक्त करते हुए कहती हैं - विनाश की तैयारी होते हुए भी महासत्ता विश्व-मानवता को बचा लेगी। इसके लिए समष्टिगत प्रयास भारत से आरम्भ होंगे। कनाडा की दिव्यदर्शी माल्माडी का कहना है- इस सदी के अन्तिम चरण में विश्व भर में भयंकर उथल-पुथल होगी। इसमें जहाँ जनसमुदाय को अतीव कष्ट सहने होंगे, वहीं इस विनाशलीला को उलट सकने वाली एक प्रचण्ड आध्यात्मिक आँधी भी चल पड़ेगी। ऐसे आध्यात्मिक तूफान का उद्गम मुझे भारत के हिमालय क्षेत्र से होता दिखाई दे रहा है।

विश्वविख्यात भविष्यवक्ता कीरो के अनुसार भी वर्ष 1999 समूचे विश्व के लिए महापरिवर्तन का संदेश लेकर आया है। उनके अनुसार एशिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश इस वर्ष उत्पात शुरू कर सकता है। उसका सामना करने के लिए रूस और अमेरिका को एक होना पड़ेगा। अरब राष्ट्रों सहित मुस्लिम बहुल देशों में आपसी रक्तपात और भीषण क्रान्तियाँ होंगी। इस महाभयंकर समय के बाद एक नये युग का सूत्रपात होगा। एक नयी सनातन सभ्यता का अभ्युदय होगा और सारे विश्व में इसका प्रसार होगा। यह सब 2000 ईसवी समाप्त होते-होते हो जाएगा।

अतीन्द्रिय क्षमता सम्पन्न महिला मारिया वाल्डो ने अपनी पुस्तक ‘न्यू एज’ (नयी सदी) में उज्ज्वल भविष्य के आगमन पर प्रकाश डाला है। इस नये युग को उन्होंने ‘एक्वेरियन एज’ के नाम से संबोधित किया है। उनके अनुसार 20वीं सदी के अन्तिम कुछ वर्षों में एक ओर विध्वंसक गतिविधियाँ अपने चरम पर होंगी, वहीं दूसरी ओर सृजनात्मक शक्तियाँ भी अपनी पूरी शक्ति लगाकर न केवल उस पर काबू पा लेंगी, वरन् नयी सृष्टि रचना में भी समर्थ होंगी। इस सबके बावजूद मारिया वाल्डो के अनुसार 20वीं सदी के अन्तिम दिनों में भी एक और बर्बर विश्वयुद्ध के छिड़ने की सम्भावना है, परन्तु कुछ आध्यात्मिक शक्तियों के पुरुषार्थ के फलस्वरूप इसे विफल कर दिया जाएगा। इस प्रयत्न को उन्होंने हरक्यूलियन एफर्ट्स की संज्ञा दी है। नये युग का सूत्रपात नयी सदी के आरम्भ होते ही आरम्भ हो जाएगा, जो क्रमशः पुष्पित-पल्लवित होता नजर आएगा। इस नयी स्थिति को मारिया ने गाँड्स किंग्डम अर्थात् दैवी राज्य का नाम दिया है।

1999 के कुछ ऐसे ही संक्रान्ति दलों का उल्लेख मिश्र के पिरामिडों में भी अंकित है। प्रख्यात खगोलशास्त्री डेविड डे विडसन ने अपनी पुस्तक ‘द ग्रेट पिरामिड इट्स डिवाइन मैसेज’ में इन भविष्यवाणियों का निष्कर्ष करते हुए लिखा है कि सन् 2000 तक का समय व्यापक उथल-पुथल भरा रहेगा। इस बीच तेज रफ्तार, सुविधाओं तथा आराम के अनोखे साधनों में अपनी नैतिकता तथा सामाजिक जिम्मेदारियाँ भुलाकर आपा-धापी में लगे लोगों का बोलबाला रहेगा। प्राकृतिक आपदाएँ कहर बरसायेंगी। मौसम आश्चर्यजनक ढंग से बदलेगा। प्रकृति इनसान पर रहम न करेगी। इसी अवधि में तृतीय विश्वयुद्ध की सम्भावना भी है। एक बार तो ऐसा लगने लगेगा मानो समूची मानवजाति के खत्म होने का खतरा उत्पन्न हो गया है। यह उथल-पुथल सन् 2000 तक चलती रहेगी। इसके बाद नये मानवधर्म का उदय होगा। यह आध्यात्मिक युग होगा। इस दौर का रहनुमा एक सन्त पुरुष होगा। उसकी तप-साधना के परिणामस्वरूप पूरी मानवजाति लम्बे समय तक सुख भोगेगी।

युगपरिवर्तन एवं इसमें युग निर्माण आन्दोलन की अहम् भूमिका के संदर्भ में परमपूज्य गुरुदेव अगस्त, 1966 की अखण्ड ज्योति के पृष्ठ 43 में लिखते हैं, “अगले 34 वर्ष काफी कष्ट भरे हैं। प्रसव पीड़ा की तरह सभी को बड़ी कठिनाइयाँ उठानी पड़ेंगी। महँगाई, अनावृष्टि, बीमारियाँ, दुर्घटनाएँ, आन्तरिक कलह आदि विविध-विधि विग्रह-उपद्रव सामने आते रहेंगे और उनसे जनसाधारण को नित-नई मुसीबतें सहनी पड़ेंगी। दुष्टता भरे दुष्कर्म बढ़ते रहेंगे, फलस्वरूप आतंक-अनाचार के दुःखद दुष्परिणाम सामने आते रहेंगे, वर्तमान जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा इन्हीं विपत्तियों में नष्ट हो जाएगा। अखण्ड ज्योति के किशोर पाठक नोट कर लें कि 34 वर्ष के बाद की दुनिया आज की तुलना में हर दृष्टि से बदली हुई होगी। उस समय युगपरिवर्तन के दृश्य खुली आँखों से देखे जा सकेंगे। अभी तो सूक्ष्मजगत में उनका बीजारोपण मात्र हो रहा है।”

पूज्य गुरुदेव का यह दिव्य कथन अपने 34 वर्ष की पूर्णता की ओर अग्रसर है। विनाश और सृजन का तुमुल संघर्ष हम सबकी आँखों के सामने है। विनाश को रौंदने और नवसृजन को पुष्पित-पल्लवित करने के लिए महाकाल ने इन्हीं दिनों प्रखर साधना वर्ष के आयोजन की प्रेरणा दी है। इन दिनों की जाने वाली तप-साधना का मूल्य और महत्व असाधारण है। अद्भुत ग्रहयोग में किए जाने वाले इस अनूठे पुरुषार्थ के परिणाम इक्कीसवीं सदी में सुनिश्चित तौर पर उज्ज्वल भविष्य के रूप में सामने आएँगे।


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