आचार्य महीधर एक बार बीमार पड़े। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की- मुझे अच्छा होने का वर दो। दूसरे दिन उनकी बीमारी अच्छी हो गई। कुछ दिन बाद वे फिर बीमार पड़े। वे उस रात्रि को भगवान से मात्र अपने आरोग्य की प्रार्थना करते रहे। उन्हें नींद आई तो लगा भगवान स्वयं आ उपस्थित हुए। बोले- अष्वलोमा के पास जा। उपचार करा। भेजा था, मेरा कुछ काम करेगा पर उलटे तू मुझसे ही माँगने लगा।
आचार्य महीधर को बड़ी ग्लानि हुई। जो काम एक वैद्य कर सकता है, उसके लिये भी भगवान? उन्होंने क्षुद्रता छोड़ी और उसी दिन से वेद-भाष्य का श्रीगणेश कर दिया। परमात्मा की उपासना के साथ कामनाएँ जोड़ना ओछापन है। सच्चे सन्त उससे अपने आपको सदैव बचाकर रखते हैं, यही उनकी महानता की पहचान होती है।