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February 1999

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मनुष्य जितना दीन-हीन स्वल्प शक्ति वाला कमजोर प्राणी है, यह प्रतिदिन के जीवन से पता चलता है। उसे पग-पग पर परिस्थितियों के आश्रित होना पड़ता है। कितने ही समय तो ऐसे आते हैं, जब औरों से सहयोग न मिले तो उसकी मृत्यु तक हो सकती है। इस तरह विचार करने से तो मनुष्य की लघुता का ही आभास होता है, किन्तु मनुष्य के पास एक ऐसी भी शक्ति है, जिसके सहारे वह लोक-परलोक की अनन्त सिद्धियों-सामर्थ्यों का स्वामी बनता है। यह है प्रार्थना की शक्ति, परमात्मा के प्रति अविचल श्रद्धा और अटूट विश्वास की शक्ति। मनुष्य प्रार्थना से अपने को बदलता है, शक्ति प्राप्त करता है और अपने भाग्य में परिवर्तन कर लेता है। विश्वासपूर्वक की गई प्रार्थना पर परमात्मा दौड़े चले आते हैं।

-उपासना समर्पण योग (वा0 क्र0 3) से

वाणी के अपव्यय को रोकना प्रत्येक मनीषी ने आवश्यक ही नहीं अनिवार्य बताया है। मनोविज्ञान वेत्ताओं का कहना है कि मौन से विचार-शक्ति बढ़ती है। जो व्यक्ति मौन रहते हैं, उनकी बुद्धि, अपेक्षाकृत अधिक स्थिर तथा सन्तुलित रहती है। सन्तुलित विचारों वाला हानि-लाभ हित-अहित के प्रसंगों पर बड़े धैर्यपूर्वक सोच-समझ सकता है। संकट या आपत्ति के समय मौन द्वारा प्रखर की हुई विचार-शक्ति बड़ी सहायक सिद्ध होती है।

-जीवन देवता की साधना-आराधना (वा0 क्र0 - 2) से


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