मानवी काया में वास करने वाले व्यक्ति सन्त, सुधारक और शहीद नाम से जाने जाते हैं। सन्त अपनी सज्जनता से मानव जीवन के सदुपयोग का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। सुधारकों को जनजीवन पर छाये भ्रष्ट चिन्तन व दुष्टाचरण के साथ जूझने का प्रबल पराक्रम करना होता है। शहीद का अर्थ है- ‘स्व’ का ‘पर’ के लिये समग्र समर्पण। इसे ही समर्पण-शरणागति कहते हैं। स्वार्थ का परमार्थ में उत्सर्ग करने से तात्पर्य है-लोभ-व्यामोह और अह के बन्धनों को काट फेंकना, दायरा व्यापक बनाकर लोक प्रवाह से अलग स्वयं को धर्म-संस्कृति के पुनरुद्धार हेतु नियोजित कर देना।
-परमपूज्य गुरुदेव