मनुष्य जीवन का यदि कोई दर्शन न हो, उसके साथ आस्थाएँ, मान्यताएँ और किन्हीं सिद्धान्तों का समावेश न हो, तो वह एक जानवर मात्र रह जाता है।
- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य