महाकाल की हुंकारें जो दिशाओं को प्रतिध्वनित कर रही हैं, उन्हें अनसुना कैसे किया जाय? युगचेतना के प्रभात पर्व पर उदीयमान सविता के आलोक को किस प्रकार भुलाया जाय? युग-अवतरण की संभावना गंगावतरण क तरह अद्भुत तो है, पर साथ ही इस तथ्य से भी इनकार कैसे किया जाय कि जो कभी चरितार्थ हो चुका है, वह फिर अपनी पुनरावृत्ति करने में असमर्थ ही रह जाएगा? युग-संधि की वर्तमान वेला ऐसी ही उथल-पुथल से भरी हुई है।