परमज्ञान (Kahani)

February 1999

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बुद्ध का अन्तिम दिन था। आनन्द छाती पीटकर रोने लगा और बोला ”प्रभु आप तो जा रहे हैं मेरा क्या होगा?” बुद्ध ने कहा-आनन्द! पागल मत बनो। मुझसे पहले कितने ही बुद्ध हो गये और मेरे बाद अनेकों होंगे। यह सिलसिला कभी समाप्त नहीं होगा। यदि तू सीखने में कुशल है, तो किसी से भी सीख लेगा। तू चालीस वर्ष तक मेरे साथ रहा, तू कहता है कि मुझे ज्ञान नहीं हुआ। मैं जा रहा हूँ, उस दिन कह रहा है कि अब क्या होगा? यदि चालीस साल में तुझे ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ, तो चालीस जन्मों में भी तेरी क्या समझ में आयेगा? हो सकता है मेरे होने के कारण तेरी सीखने की क्षमता क्षीण हो गयी हो। तू समझता था कि गुरु मिल गये, सब कुछ मिल गया। मिलना ही पर्याप्त नहीं, तुझे भी बदलने की जरूरत थी, बनने की जरूरत थी। संभव है मेरे न रहने पर तू बुद्धत्व को प्राप्त हो।” इतना कहकर बुद्ध ने अन्तिम साँस ली। ऐसा ही हुआ। कहते हैं कि आनन्द को बुद्ध के जाने के बाद ही परमज्ञान उपलब्ध हो सका।


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