एक सन्त दस शिष्यों समेत सघन वन में रहते थे। एक रात्रि को उनने एक विशेष साधना कराई। शिष्यों को पंक्तिबद्ध होकर ध्यान करने के लिए बिठा दिया।
रात्रि के तीसरे प्रहर गुरु ने धीमे से आवाज दी- राम! राम उठा, गुरु ने उसे चुपके से दुर्लभ सिद्धि प्रदान की। अब दूसरे की बारी आई। पुकारा-श्याम! पर श्याम तो सो रहा था। इस बार भी राम ही आया और दूसरी सिद्धि भी लेकर चला गया।
शेष सभी शिष्य सो रहे थे। गुरु को उस दिन दस सिद्धियाँ देनी थीं। सोते को जगाने का निषेध था। दसों बार राम ही आया और एक-एक करके दसों सिद्धियाँ प्राप्त करके कृतकृत्य हो गया। सोने वाले दूसरे दिन जागे और अपनी भूल पर पछताने लगे।
निराकार सत्ता की- महाकाल की प्रेरणा इसी प्रकार हम सबको टटोलती है। जो जाग्रत होते हैं, वह ही उस प्रेरणा को समझ पाते हैं-शक्ति पाकर सामर्थ्यवान बनते तथा सारे वातावरण को बदल कर रख देते हैं।