युगसंधि महापुरश्चरण आज से प्रायः साढ़े दस वर्ष पूर्व आश्विन नवरात्रि की वेला में जब एक बारह वर्षीय अनुष्ठान के रूप में आरंभ हुआ था, तब सत्र संचालक सत्ता ने एक लाख सृजनशिल्पी मानवता के चरणों पर अर्पित करने का संकल्प लिया था। इस निमित्त यह निर्देश दिया गया था कि प्राणवान परिजन इस अवधि में वर्ष में न्यूनतम एक बार शाँतिकुँज आकर नौ दिवसीय सत्रों में भागीदारी करें-आवश्यक ऊर्जा अनुदान लेकर कार्यक्षेत्र में लौटें। परमपूज्य गुरुदेव ने लिखा था कि जले हुए दीपक ही दूसरों को जला पाने में समर्थ हो सकते हैं। इसके लिए अनिवार्य है कि साधना रूपी घृत की नियमित रूप से पूर्ति होती रहे। यह क्रम तब से नियमित चलता रहा है। इस बीच देवसंस्कृति दिग्विजय अभियान के अंतर्गत साधना-पुरुषार्थ और प्रखर हुआ- एक अर्द्ध महापूर्णाहुति आँवलखेड़ा (आगरा) में सम्पन्न हुई और अब द्वितीय अंतिम महापूर्णाहुति की वेला आ पहुँची। अब तो बचे हुए समय का, विशेषकर इस प्रखर साधना वर्ष का एक-एक क्षण मूल्यवान है।
इस प्रखर साधना वर्ष में वर्ष भर सारे भारतवर्ष व विश्व के सत्तर देशों की प्रायः एक हजार शाखाओं में ढाई दिवसीय साधना आयोजनों की श्रृंखला चलेगी। जब सारी विश्ववसुधा का चप्पा-चप्पा साधना की शक्ति से स्पन्दित हो रहा हो तो नवयुग की गंगोत्री का पुरुषार्थ तो और भी विशिष्ट होना चाहिए, जहाँ से सारा चिन्तन-मार्गदर्शन-राष्ट्रव्यापी संगठनात्मक पुनर्गठन का सूत्र-संचालन-नियमन चल रहा हो, वहाँ तो यह प्रक्रिया और अधिक गतिशील-सक्रिय-जीवन्त नजर आनी चाहिए। इस वर्ष के शिविरों में शाँतिकुँज में आने वाले परिजनों को कुछ विशिष्ट उपलब्धि होनी चाहिए एवं यह विशिष्ट साधनात्मक ऊर्जा के परिमाण में हो, यही अभी की, समय की सबसे बड़ी माँग है।
इस वर्ष 21 जनवरी (वसंत पंचमी की पूर्व संध्या) से ही शाँतिकुँज गायत्री तीर्थ, जहाँ नित्य चौबीस करोड़ गायत्री मंत्र का जाप सतत् चलता रहा है, में प्रातः की आरती 5:30 से शाम की आरती 5:30 तक अखण्ड जप का शुभारंभ कर दिया गया है। यहाँ रहने वाले साधक-कार्यकर्ताओं से लेकर क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं तक- सभी के लिए इसमें न्यूनाधिक भागीदारी अनिवार्य कर दी गयी है। युगऋषि की अंतिम बीस वर्षों में रही कार्यस्थली विश्वामित्र ऋषि की तपःस्थली-गंगा की गोद, हिमालय की छाया में स्थित इस सिद्धपीठ गायत्रीतीर्थ
संधिवेला में विशिष्ट साधना सत्रों की श्रृंखला चलेगी
में इस अखण्ड जप में प्रतिदिन मात्र एक घण्टा जप कर लेना भी इतनी कुछ शक्ति देगा जो नौ दिवसीय गायत्री अनुष्ठान के समकक्ष ठहरे। इसी के साथ प्रातः के आधा घंटा उगते सूर्य के ध्यान के साथ परमपूज्य गुरुदेव के निर्देशों के साथ भाव-विभोर हो जाप, मध्याह्न संध्या में पंद्रह मिनट (पौने दे से दो तक) ज्योति अवतरण की साधना तथा शाम को पंद्रह मिनट (छह से सवा छह) नादयोग की साधना पहले की तरह और भी प्रखर-परिमार्जित रूप में संपन्न होती रहेगी। इस अवधि में वर्ष भर गुरुवार का आँशिक व्रत भी सामूहिक तप के रूप में गायत्रीतीर्थ में चलेगा, जिसमें साधक मात्र एक समय आहार लेंगे। सत्रों में भी प्रतिदिन एक समय मात्र अमृताशन का क्रम चलेगा। यह प्रक्रिया अभी तो इस वसन्त से आगामी वसन्त तक के लिए निर्धारित की गयी है, किंतु यह क्रम 2001 के वसंत 29 जनवरी तक भी चल सकता है।
कुम्हार अपने कच्चे बर्तनों को सुखाकर एकत्र करता और आवे में एक साथ पकाता है। इसी प्रक्रिया का स्वरूप शाँतिकुँज की शिविर व्यवस्था में किये गए इस परिमार्जन-परिशोधन में देखा जा सकता है। यह प्रक्रिया युगपरिवर्तन के, नवसृजन के परिप्रेक्ष्य में और तीव्र गति पकड़े, इसीलिए यह क्रम यहाँ आरंभ किया गया है।
फरवरी माह में सत्रों का क्रम यथावत 1 से 9, 11 से 19 व 21 से 28 तारीखों में चलता रहेगा। मार्च माह में भी 1 से 9, 11 से 19 व 18 से 25- अंतिम चैत्र नवरात्रि का विशिष्ट सत्र, इस प्रकार तीन सत्र चलेंगे। किंतु इसके तुरंत बाद 27 मार्च से पाँच दिवसीय सत्रों की श्रृंखला आरंभ हो जाएगी, जो गुरुपूर्णिमा 28 जुलाई के समापन तक चलती रहेगी। अधिक-से-अधिक व्यक्तियों को गायत्रीतीर्थ में आने, सत्रों में भागीदारी करने का अवसर मिले, इसीलिए कुल पच्चीस पाँच-दिवसीय सत्रों का विशेष प्रावधान इस वर्ष रखा गया है। ये 27 मार्च से 31 मार्च, 1 से 5 अप्रैल से लेकर 26 से 30 जुलाई तक चलते रहेंगे। अप्रैल, मई, जून, जुलाई माह में प्रत्येक में ये 1 से 5, 6 से 10, 11 से 15, 16 से 20, 21 से 25, 26 से 30 इन तारीखों में चलते रहेंगे। प्रत्येक सत्र में पूर्व संध्या को पहुँचना होगा। अंतिम दिन विदाई का व आने वाले सत्र के स्वागत के लिए होगा। उज्ज्वल भविष्य की साधना से अधिक-से-अधिक परिजनों को जोड़ने के लिए यह विशिष्ट क्रम व सत्रों का प्रावधान रखा गया है। मात्र साधक स्तर के कार्यकर्ताओं के लिए ये विशिष्ट संधिवेला साधना सत्र हैं। पूर्व की तरह ही अनगढ़-कुसंस्कारी बीमार, वयोवृद्धों अशक्तों एवं छोटे बच्चों को साथ लेकर आने की मनाही है। जो इस विशिष्ट श्रृंखला में भागीदारी करना चाहते हों, वे अभी से पत्राचार कर स्थान सुरक्षित करा लें।
*समाप्त*