महासाधना से सौर शक्ति का संदोहन

February 1999

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सूर्य को सृष्टि का प्राण कहा गया है। अपने आधिभौतिक, आदि-दैविक व आध्यात्मिक तीनों ही रूपों में यह समस्त जीवधारियों, वृक्ष-वनस्पतियों ब्रह्माण्डीय हलचलों को प्रभावित करता है। सौर शक्ति की उपासना भारतीय अध्यात्म के मूल मर्म के रूप में आदिकाल से रही है, इसीलिए वेदों में ऋषिगणों द्वारा कहा जाता रहा है- मही देवस्य सवितुः परिष्टुति- महान है सविता देवता रूपी व्यापक तेज की अभ्यर्थना-स्तुति जो रचयिता है- मानव मात्र का पोषक है, वही सविता है। प्रसविता शब्द इसी कारण इसके लिए प्रयुक्त होता है अर्थात् मानवमात्र का पालन-पोषण करने वाला। सूर्यदेव की उपासना को भारतीय संस्कृति में इसी कारण अति महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता रहा है। अक्षय शक्ति के स्रोत परमदेव सविता के बारे में जानने-उनकी महत्ता समझने के उपरान्त यह महत्वपूर्ण है कि उनसे संबंध जोड़ने के सूत्रों को हृदयंगम किया जाय। संबंध न जुड़ने व बने रहने से ही आज की आस्था संकट की विभीषिका पैदा हुई, यदि यह कहा जाय तो कोई अत्युक्ति न होगी। प्रस्तुत प्रखर साधना वर्ष में सविता देव के तेज के ध्यान के साथ सद्बुद्धि की प्रार्थना-उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ भावनापरक ध्यान इसी कारण अति महत्वपूर्ण बताया गया है।

‘गायत्री महामंत्र’ सविता देवता से संबंधों को जोड़ने, प्रगाढ़ कर उनकी शक्ति को अपने अंदर आकर्षित कर संग्रहित करने हेतु संपन्न शोध प्रयासों का, ऋषि सत्ताओं के भागीरथी पुरुषार्थ का निचोड़ है। इस छंद के मंत्र शिरोमणि होने एवं वैदिक वांग्मय में इसे सर्वश्रेष्ठ मंत्र घोषित किए जाने के पीछे यही कारण है। गायत्री महामंत्र में शब्दों का गुँथन कुछ इस वैज्ञानिक विधि से हुआ है कि उसके जप से साधक की अन्तःचेतना में सविता देवता के तेज-भर्ग के समाविष्ट होने से प्रसुप्त सूक्ष्म संस्थानों में जाग्रति आती है, जमे सभी कषाय-कल्मष घुलते चले जाते हैं। सौर-चेतना का अविरल प्रवाह अस्तित्व के कण-कण में प्रवाहित होने लगता है। असामान्य चमत्कारी सामर्थ्य उत्पन्न करने वाला साधनात्मक पुरुषार्थ है यह।

सूर्य का-सविता देवता का प्रातः के उदीयमान स्वर्णिम सूर्य के तेज का ध्यान जब गायत्री मंत्र के जाप से किया जाता है, तो व्यष्टि के समष्टि से एकात्म होने की ग्राहय विधा भी परिपूर्ण ढंग से सम्पादित होती है। परमपूज्य गुरुदेव के सभी प्रयोग जो स्वयं पर व समग्र गायत्री परिवार पर संपन्न हुए- इसी सविता देवता की उपासना- अभ्यर्थना पर केन्द्रित रहे। इसी ने विराट गायत्री परिवार का सृजन किया, इसी ने युगनिर्माण की आधारशिला रखी और वही युगपरिवर्तन का अगले दिनों निमित्त बनने जा रहा है। सविता-अमृतत्व का स्रोत है। इसकी उपासना साधक के जीवन में प्राणशक्ति का संचय करने में मदद करती है- मन में उल्लास तरंगित करती और आत्मा को उसके अमृत स्वरूप का बोध कराती है। इसीलिए इसकी साधना के विज्ञान को मधुविद्या कहा गया है। छान्दोग्य उपनिषद् के प्रथम खण्ड के प्रथम बारह श्लोकों में इसका विस्तृत विवरण पढ़ा जा सकता है। आज जो प्राणशक्ति का ह्रास तेजी से होता जा रहा है, उसमें यदि किसी का सहारा है, तो मात्र सविता साधना का- जिसकी शक्ति के संदोहन से मानवमात्र को चिरयौवन की-देवताओं के समकक्ष अमरत्व की प्राप्ति हो सकती है।

‘गायत्री’- इस एक शब्द में पंचभौतिक प्राण एवं मनःशक्ति का समग्र रूप आ जाता है। भौतिक क्लेशों-प्रपंचों से मुक्ति दिलाने हेतु इसका माहात्म्य शास्त्रों में वर्णित है। इस गायत्री के आविर्भाव के बारे में जब भी ऋषिगणों से मार्गदर्शन माँगा जाता है, तो उपनिषद्कार कहते हैं-देवात्मशक्ति स्वगुणे निगूढ़ः अर्थात् देवमाया या इन्द्र शक्ति ही वह सत्ता है, जो विश्व गायत्री अर्थात् आद्यशक्ति के विभिन्न रूपों में विकसित होती है। यह देवमाया या इन्द्रशक्ति कौन है? इसका उत्तर भी उपनिषद् देता है- ‘तस्य दृष्यः शतादषः’ अर्थात् सूर्य ही वह इंद्र है, जिसकी हजारों किरणें हैं- प्राणशक्ति से भरी रश्मियाँ हैं। वस्तुतः हमारे ऋषिगण सूर्य को एक ‘विराट पुरुष’ की संज्ञा प्रदान करते हैं, जो एक व्यापक क्षेत्र में क्रियाशील रहता है- लगभग ऐसे ही जैसे कि एक विचारशील मनुष्य। वह सोच-विचार भी कर सकता है, विकल और क्षुब्ध भी हो सकता है, दण्ड और पुरस्कार भी दे सकता है। पूर्णतः चैतन्यता से भरीपूरी सत्ता है सविता रूपी विराट पुरुष की। गायत्री पर जब हम विश्वास कर श्रद्धापूर्वक जप करते हैं, तो हम वस्तुतः उस विराट पुरुष की शक्तियों को अपने अंदर अवशोषित करते हैं। जिस तरह बड़े बिजलीघर से संपर्क स्थापित कर छोटे बिजलीघर भी प्रकाशित हो जाते हैं- विराट पुरुष से गायत्री जप द्वारा- उसके भावार्थ का ध्यान करने वाला- सद्बुद्धि की प्रार्थना करने वाला भी उसी तरह प्रकाशवान-ओजवान होता चला जाता है, लाभान्वित होता है।

हम मनुष्य को ‘माइक्रोकाँस्म’ व्यष्टि के रूप में छोटी गायत्री का प्रकाशपुँज मान सकते हैं एवं सूर्य को एक ‘मेक्रोकाँस्म’ समष्टि के रूप में बड़ी गायत्री। छोटी गायत्री को जब विराट गायत्री के साथ जोड़ दिया जाता है, तो वह भी उसी शक्ति-संपन्नता को अनुभव करती है, जो विराट पुरुष सविता में कूट-कूटकर भरी पड़ी है। गायत्री के विराट स्वरूप को पा जाने पर साधक उतनी ही क्षमता वाला हो सकता है, जितनी कि सूर्य भगवान की क्षमता है। ऐसी साधना को ही सिद्धिदात्री साधना कहा जाता है। यही सर्वोच्च उपलब्धि भी है।

अब वैज्ञानिक भी यह मानने लगे हैं कि सूर्य संवेदना का सघन पुँज है। ‘सोलर फ्लेयर्स’ (सौरलपटों) के रूप में सूर्य में जो भी हलचलें दिखाई पड़ती है, वे वस्तुतः विकलता-क्षोभ-प्रसन्नता और क्रोध जैसी भावनाओं के उस विराट पुरुष के स्थूल स्पन्दन हैं। जिस तरह विचारों का प्रभाव मानव शरीर पर पड़ता है, उसी प्रकार यह विकलताएँ भी प्रकृति में भारी हलचलें उत्पन्न करती रहती हैं। विकलता की स्थिति में सूर्य विशेष प्रकार के सूक्ष्मकणों और किरणों के अम्बार छोड़ता है, जो करोड़ों मील दूर तक के वातावरण को प्रभावित करते हैं। विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्रों में तूफान उठने लगता है। पृथ्वी पर इनका प्रभाव अत्यधिक गर्मी, हिमपात, ओले, अनावृष्टि, बाढ़, वर्षा, झंझावात आदि के रूप में पड़ता है। इतना ही नहीं राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं भावनात्मक स्तर पर भी बड़े व्यापक प्रभाव देखे गए हैं। विगत चार वर्षों (1995) से सतत् ऐसे सौर चुम्बकीय तूफानों की सूर्य की विकलता के करण माने बाढ़-सी आ रही है एवं वही दैवी प्रकोपों, विभीषिकाओं का निमित्त कारण बनी है, यह कहा जा सकता है।

सूर्य की इस मनोमय क्रान्ति से युगपरिवर्तन की वेला में सारी जगती प्रभावित होगी एवं व्यक्तियों के मन एवं परिस्थितियाँ इसके प्रभाव से गड़बड़ा सकती हैं, फिर भी यह मानकर चलना चाहिए कि है यह सब साधनात्मक पुरुषार्थ प्रखर करने के लिए ही। विश्व की भौगोलिक एवं वातावरण पर इससे कितने ही बड़े और भयंकर परिवर्तन क्यों न हों, भारतीय संस्कृति को इससे संरक्षण मिलेगा, क्योंकि ‘गायत्री’ इसके रोम-रोम में संव्याप्त है। भारतीय संस्कृति के अभ्युत्थान के मूल में उन विराट पुरुष की इच्छा ही काम कर रही है, चाहे हम वैज्ञानिक विधि-विधानों से मानें अथवा श्रद्धापूर्वक।

ऋग्वेद की ऋचा कहती है- ‘सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषष्च’ अर्थात् सूर्य ही चर और अचर विश्व-सभी की आत्मा व रक्षक है। श्री अरविंद ने ‘वेद रहस्य’ में लिखा है- वैदिक ऋषियों का सूर्य सत्य का अधिपति है, आलोक प्रदाता है, रचयिता है- ‘सविता’ के रूप में एवं पुष्टिदाता है ‘पूषा’ के रूप में। उसकी किरणें अंतर्ज्ञान की तथा प्रकाशपूर्ण विवेक की अतिमानसिक क्रियाओं की द्योतक हैं। वस्तुतः सूर्य धरती पर जीवन के प्रकटीकरण के प्रतीक हैं- जीवन का अर्थ ही सूर्योदय का वर्णन करना है। पष्येम नु सूर्यमुच्चरन्तम्। इन सब प्रतिपादनों से, सूर्योपासना ही क्यों? इस विराट पुरुष की सभी धर्म-सम्प्रदायों के लिए निर्विवाद उपासना पद्धति का निर्धारण क्यों? इन प्रश्नों का उत्तर भी बड़ा स्पष्ट मिला जाता है।

फारसी-अरबी में सूर्य को ‘आफताब’ कहते हैं। इस्लाम में सूर्य को ‘इल्म अहकाय अनन जूम’ का केन्द्र माना गया है अर्थात् सूर्य इच्छाशक्ति को बढ़ाने वाली चैतन्य सत्ता के प्रतीक हैं। अल्लामा इकबाल ने आफताब की स्तुति के रूप में गायत्री मंत्र का बड़ा सुन्दर अनुवाद उर्दू में किया है। ईसाई धर्म में रविवार का दिन पवित्र घोषित कर इस दिन प्रभु की आराधना, दान दिये जाने को पवित्र फलदायी बताया गया है। यह

बात अलग है कि कालान्तर में उसका स्वरूप कर्मकाण्डी मात्र बन गया। किंतु प्रयास करने पर सूर्योपासना के लिए सभी वर्गों-संप्रदायों-जाति-धर्मों को सहमत किया जा सकता है, किया जाना चाहिए, तब ही तो सब के लिए युगपरिवर्तन-उज्ज्वल भविष्य के अवतरण की बात सोची जा सकती है।

प्रस्तुत युगसंधि महापुरश्चरण विराट समूह द्वारा आराधना के रूप में संपन्न हो रहा है। प्राणविद्या के आचार्यों का कथन है कि आज समाज में छाया प्राणशक्ति का संकट निश्चित ही गायत्री महाशक्ति की, सूर्य को केन्द्र मानकर की गई साधना से दूर हो सकता है। श्रुति कहती है- ‘तेजो वै गायत्री’, फिर ताण्ड्योपनिषद् कहता है- ज्योतिर्वै गायत्री छन्दसाम् अर्थात् गायत्री एक प्रकार का तेज है, जो प्रकाश और ऊष्मा के रूप में विश्व का मूल है। सूर्य गायत्री तेज का सबसे बड़ा भण्डार है और विश्व के निर्माण में सबसे बड़ा कारण भी। शास्त्रकार यह भी कहते हैं कि म नहीं सविता है। अर्थात् जब मन और सूर्य देव का साधना के माध्यम से तादात्म्य किया जाता है, तो सूर्य की ‘भर्ग’ शक्ति मनुष्य के अन्तःकरण में प्रविष्ट हो सामंजस्य स्थापित करती है। असत् का निष्कासन और सुसंस्कारों का विकास करती है। यही तो युगपरिवर्तन की धुरी है। इक्कीसवीं सदी में सूर्य ही सबका आराध्य होगा-वही उज्ज्वल भविष्य का अवतरण हम सबके लिए करेगा।


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