(श्री गोपाल जी माहेश्वरी, हाईस्कूल, मुरैना)
मैं कक्षा 8 में था। उर्दू में कवियों के जीवन चरित्र याद नहीं होते थे। इस कारण अर्ध-वार्षिक परीक्षा में एक दो अंगुल चौड़े पर्चे पर उनकी संक्षिप्त जीवनी लिख ले गया और उससे लाभ उठा कर परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया। परन्तु वार्षिक परीक्षा में इसी विषय में फेल हो गया और दर्जे में प्रमोशन से पास हुआ। परीक्षा में यह मेरी पहली और अन्तिम बेईमानी थी। मैं हमेशा ही परीक्षा में प्रथम, द्वितीय और तृतीय नम्बरों से पास होता था और उसके बाद में भी इसी तरह से पास होता रहा। परन्तु मेरी बेईमानी ने मुझे सदैव के लिए नीचा दिखाया।
मैं यहाँ इस अपने हाईस्कूल में भी यही बात देखता हूँ कि जो लड़के नकल करते हैं, वे उसी विषय में अथवा उस विषय में जिसे वे अपना कहते हैं और स्वप्न में भी उसमें फेल होने का ध्यान नहीं होता, फेल हो जाते हैं।
निश्चय है कि बेईमानी से सफलता नहीं मिल सकती, यदि मिल भी जाय तो अन्त में बड़ी दुखदायी होती है।