परमात्मा के दर्शन

August 1942

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(श्री रामप्रतापजी ‘राम’, झोझू)

जब मैं 6 या 7 वर्ष का था, तब मेरी दादी मुझे ध्रुव, प्रहलाद आदि अनेक भगवत् भक्तों की कहानियाँ सुनाया करती थी। इन कहानियों का मेरे ऊपर बड़ा प्रभाव पड़ता और ऐसी इच्छा करता कि मैं भी ध्रुव बालक की तरह परमात्मा के दर्शन करूंगा। 7 वर्ष की अवस्था में परमात्मा के दर्शनों के लिए जंगल में जाकर एक झाड़ी में छिप जाता और परमात्मा का भजन करता। पिताजी मुझे मुश्किल से खोज कर लाते। जब मैं स्कूल में भरती हुआ और हिन्दी पढ़ने लगा, तब भक्तभाल और रामायण को बड़े प्रेम से पढ़ने लगा। जब 24 वर्ष का था तो एक भजनोपदेशक ने हमारे गाँव में आकर ध्रुव, प्रहलाद की कथा बड़े सुन्दर रूप से गाई। इन भजनों ने मेरे उन बाल्य संस्कारों को जागृत कर दिया। मैं उसी समय उपदेशक के प्रभाव से प्रभावित होकर परमात्मा के दर्शन के लिए 211 कोस दूरी पर, निर्जन जंगल में जाकर एक शुष्क पहाड़ पर ध्यान लगा कर बैठ गया। दिन भर ध्यान में बैठा रहा, सुनसान जंगल में रात्रि भी बितानी थी। नाम स्मरण करते- करते निद्रा आ गई, और स्वप्नावस्था में परमात्मा मेरे पास आये। उन्होंने बड़े प्रेम से मुझ से कहा - “दुखी क्यों होते हो? मैं तो सदैव तुम्हारे पास ही हूँ।” नींद खुलने पर वह दर्शन अदृश्य हो गये।

मेरी इच्छा थी कि जागृत अवस्था में परमात्मा के दर्शन करूं और उनसे (1) अनन्य भक्ति (2) काव्य शक्ति (3) जीवन मुक्ति के वरदान माँगू। इसी इच्छा से दो दिन और दो रात्रि उस निर्जन पर्वत पर बिताये, न तो वहाँ अन्न का एक दाना था और न पानी की एक बूँद। दर्शनों की लालसा, भूख प्यास का कष्ट और निर्जन स्थान की भयंकरता ने मुझे व्याकुल कर दिया और फूट-फूट कर रोने लगा। खूब रोया, जी भर कर रोया और दर्शन न मिलने पर पर्वत पर से कूद कर प्राण देने के लिए तैयार हो गया। सचमुच मैं मरने के लिए उद्यत था।

व्याकुलता, विचलता और भावुकता के प्रवाह में बहता हुआ मैं बाल्य बुद्धि के कारण अनर्थ करने जा रहा था कि अचानक मुझे समाधि जैसी निद्रावस्था प्राप्त हुई और भीतर आत्मा में से ऐसी प्रेरणा हुई कि- ‘तुम्हारी इच्छा पूरी होगी।” इस आश्वासन को आकाशवाणी समझकर वापिस चला आया। घर आकर दो रोज की इस गड़बड़ के कारण ऐसा बीमार पड़ा कि महीने भर तक शय्या में पड़ा रहा और मरते-मरते बचा।

मेरी यह घटना पाठकों को शिक्षा देती है कि छोटे बालकों के हृदयों पर कथाओं और उपदेशों का कैसा असर होता है और उन्हें किस प्रकार के उपदेश देने की आवश्यकता है, ताकि वे भावी जीवन को ठीक दिशा में ले जा सकें।


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