(ले.- श्री पं. द्वारिकाप्रसाद जी शर्मा नागपुर)
मैं बाल्यावस्था में तो बहुत ही सीधा था, किन्तु युवावस्था में संगतिवश देखा−देखी चालाकी व कपट व्यवहार सीख गया और अन्याय तथा असत्य व्यवहार भी करने लगा। जिसके फल स्वरूप मुझे पर्याप्त दंड भुगतना पड़ा। जिससे मन में बड़ी ग्लानि हुई, चिन्ता और पश्चाताप से बहुत दिन तक हृदय में अशान्ति रही।
अब जब कभी असत्य व्यवहार का अवसर आता है, तो पिछली घटना-दंड और पश्चाताप सामने आ जाते हैं और अपने को सँभाल लेता हूँ। दंड में पाप शोधन की बड़ी शक्ति हैं।