(श्री रामकृष्ण वर्मा लखनऊ)
यों तो सत्य को मैं पहले से मानता चला आ रहा हूँ, परन्तु अन्धकार में था, धर्म का मार्ग मेरी समझ में कुछ स्पष्ट रूप से नहीं आया था। दैवयोग से पूना के सैसून अस्पताल में अखण्ड-ज्योति से मेरा साक्षात्कार हुआ और बड़े मनोयोग के साथ इसे पढ़ने लगा। इससे मेरे सारे भ्रम और अज्ञानों का निवारण हो गया। अब तत्परता के साथ सत्य धर्म का पालन कर रहा हूँ। इससे मुझे कोई कठिनाई या हानि दिखाई नहीं पड़ती, वरन् दिन-दिन आत्मोन्नति होती जा रही है और हृदय में बड़ी शान्ति रहती है।
सत्य के अवलम्बन का ऐसा ही प्रभाव है। सत्य को ग्रहण करने से ही जीवन सार्थक बन सकता है।