दो अनुभूत मंत्र

August 1942

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री रामरक्षपालजी वैधराज, डालमिया दादरी)

मैंने अपने जीवन में दो मन्त्रों का आश्रय लिया है, जिससे अनेक विपत्तियों से उद्धार हुआ है। मेरे पूज्य पितामह जी ने कहा था कि जिस समय तुझे कोई क्लेश, दुःख, आपत्ति होवे, उस समय इनका विधि पूर्वक जाप करना। सब कष्ट, दुःख नष्ट होकर कामना सिद्ध होगी। तब से जिस - जिस समय मुझे कोई कष्ट हुआ, तभी मैंने इसका अनुभव किया और सफलता मिली। यदि मेरे पूज्य पितामह जी मुझे सम्पत्ति दे जाते, तो उससे इन विपत्तियों में से मुक्त होना असम्भव था, जैसा कि उनके उपदेशानुसार उन दो मन्त्रों की सहायता से दुख-मुक्त होता हूँ। इनके आश्रय पर आगे भी सब कष्टों को पार करने का मुझे साहस हैं।

वह दो मन्त्र निम्नलिखित हैं:-

1.कार्मण्य दोषो पहत स्वभावः पृच्छामि त्वाँ धर्म संमूढ़ चेतः। यच्छेयः स्यान्निश्चितं ब्र हि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि माँ त्वाँ प्रपन्नम्॥

-गीता. अध्याय 2/7

2. कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।

प्रणात क्लेशनाशाय, गोविन्दाय नमोनमः॥

-श्रीमद्भागवत् 10/73

नियमानुसार साधन विधि तो विस्तृत है और वह इन थोड़ी पंक्तियों में नहीं लिखी जा सकती, फिर भी इन मन्त्रों का साधारण पाठ करना भी बहुत लाभदायक हैं। गीता के श्लोक का जाप करने से हृदय का बल बढ़ता है और साहस उत्पन्न होता है तथा कष्ट निवारण के लिए क्या करना चाहिए, उसका उचित उत्तर ईश्वर की ओर से आत्मा को मिल जाता है।

दूसरे मन्त्र में भगवान का नाम स्मरण और कष्ट निवारण की प्रार्थना है। सच्ची प्रार्थना को परमात्मा सुनते हैं और भक्त की इच्छा पूरी कर देते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118