रामायण से सिद्धियाँ

August 1942

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री पं. लक्ष्मीनारायण सिंह शर्मा, सा शिरोमणि, बखरी)

मेरे स्कूल के द्वितीय शिक्षक बा. रामगुलाम जी ने एक दिन क्लास के सब लड़कों से कहा- जो कोई ऊर्ध्व पुँग तिलक धारण करके आवेगा उसे मैं मिष्ठान खाने को दूँगा। इस बात को सुनकर बहुत से लड़के चन्दन धारण करके आने लगे और मिष्ठान पाने लगे। मैं भी उत्साह से तिलक लगाता पर संकोचवश स्कूल में पहुँचने से पहले ही मिटा देता था। कुछ दिनों तक सहपाठियों का यह कार्यक्रम जारी रहा, किन्तु जब मिष्ठान का दिवाला निकल गया तो सभी लड़कों ने चन्दन लगाना छोड़ दिया।

इन दिनों मेरे दिल में एकाएक यह भाव उठा कि लोभ वश नहीं किन्तु कर्त्तव्यवश तिलक धारण करना चाहिए और साथ ही कुछ पाठ भी अवश्य करना चाहिये। ऐसा निश्चय कर मैं रामायण का एक गुटका ले आया और उसका पाठ, तिलक धारण तथा हवन करने लगा। स्कूल में जाता, मन लगा कर पाठ याद करता, मेरी दिनोंदिन तरक्की होने लगी, यहाँ तक कि क्लास का मॉनिटर बन गया। मिथ्या भाषण और पाप से सदैव बचता रहता।

धीरे-धीरे मुझे ऐसी शक्ति प्राप्त हो गई कि दूसरों के मन की बात जानने लगा। एक दिन मैंने यों ही अचानक मुनीलाल चौधरी से कहा- आज आपकी दही बूरा खाने की इच्छा थी, किन्तु भात खाकर आये हैं। चौधरी जी अचम्भे में रह गये क्योंकि मैंने उनके मन की बात ठीक-ठीक बता दी थी। चर्चा स्कूल में फैली सब आकर वही प्रश्न किया करते और मैं सब को ठीक-ठीक उत्तर दे दिया करता। लोग समझते थे मुझे कोई मन्त्र सिद्ध है। मैं उनसे स्पष्ट कह देता, भाई यह श्री रामचरित्रमानस का प्रभाव है। आप लोग भी उसका पाठ किया कीजिये। इस प्रकार स्कूल भर में रामायण प्रचार जोरों से होने लगा।

समय के प्रभाव के साथ स्कूल छूटा और अब मैं अध्यापकी करता हूँ, पर श्री रामचरित्र मानस के प्रभाव से जो सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं उनका अनुभव निरन्तर अधिकाधिक करता जाता हूँ।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles