विश्वास का प्रत्यक्ष फल

August 1942

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(श्री राधाकृष्ण पाठक, नुनहड़)

मेरे कुटुम्ब के भरण-पोषण का एक मात्र आधार मेरी 15 रुपया मासिक शिक्षावृत्ति ही थी। दैव योग से मेरा ट्रान्सफर पिछोर नामक स्थान को हुआ, जहाँ पर कि मेरी ससुराल भी थी। उन्नत होने के लिये मनुष्य की जन्म-जात अभिलाषा है। इसी प्रेरणानुसार मैंने क्लैरिकल परीक्षा पास करने का विचार किया।

श्री हनुमान जी मेरे आराध्य एवं इष्टदेव हैं। उन दिनों ग्रीष्म-काल होने के कारण मैं उनके मन्दिर में ठण्डक रखने के लिये अपने फुरसत के समय में पानी से धोया करता था। देखने वाले कोई मुझे आडम्बरी, कोई पागल कहा करते थे। पर मुझे उनकी आलोचना की कोई परवाह नहीं थी। एक दिन श्री मारुति विग्रह के पास बैठा हुआ विचार कर ही रहा था कि प्रभो। कहीं से 5) प्राप्त हो जावें तो फीस भेज दें, ताकि परीक्षा में प्रविष्ट हो जाने का निश्चय हो जावे। कोर्स की पुस्तकें तो जहाँ-तहाँ से भी तलाश कर लेंगे और कुछ न मिलने पर खरीद भी लेंगे। वहाँ बैठा हुआ इस प्रकार प्रार्थना कर ही रहा था कि बाहर से किसी के बुलाने की आवाज आई। मैंने बाहर आकर देखा कि मेरा पढ़ाया हुआ विद्यार्थी बाबूलाल गुप्ता अपनी परीक्षा साफल्य पर प्रणाम कर मुझे 5) दे रहा है और कहने लगा कि आपके कृपा के बल पर ही मैं पास हो सका हूँ। इस प्रकार का सुयोग पाकर मुझे श्रद्धा व विश्वास में और भी दृढ़ता हो गई।

फीस भेज दी थी, परन्तु पुस्तकें प्राप्त होने में देरी होने के कारण अध्ययन के लिये केवल 3 मास ही शेष रहा था। यथावकाश पढ़ाई करता था और श्री महावीर जी की कृपा से परीक्षा में सफलता मिलने का भी पूर्ण विश्वास था। समय पर परीक्षा कार्य भी सम्पन्न हो गया। मुझे विश्वास तो पूर्ण था, परन्तु कभी 2 कुछ लोगों के मजाक उड़ाये जाने पर खेद सा होने लगता था कि अगर कहीं फेल हो गये तो ससुराल का मजाक स्थायी हो जायेगा। “चिन्ता को जितना दुहराया जाता है, वह उतना ही दृढ़ता का रूप धारण करती जाती है” अतः उसने मुझे पूर्ण ग्रास लिया। रात को 8:30 बजे अपने इष्टदेव के पास गया, वहाँ बैठकर एकाग्रतापूर्वक उनका मूक चिन्तन करीब 3 घन्टे करता रहा। अन्त में कातर प्रार्थना करता हुआ कि अब परीक्षा फल प्रकाशित होने वाला ही है, लज्जा आपके हाथ है, घर आया।

रात आधी से अधिक व्यतीत हो चुकी थी। नींद नहीं आ रही थी, न जाने कब झपकी लगी, तो देखा एक वृद्ध ब्राह्मण परीक्षा-फल नामक एक पत्र लिये बता रहा है और कह रहा है कि अब रोते क्यों हो, यह 606 रोल नम्बर तुम्हारा ही तो है, देखो? एक दम घबरा कर उठा वहाँ कोई न था। कुछ देर बाद चार बजे तो उठ कर नित्य कृत्य में लग गया। सरकारी गजेट की प्रतीक्षा में सभी थे, मैं भी अपना परीक्षाफल देखने की चिन्ता में था। लोग मेरी ओर सहास्य देख रहे थे और कह रहे थे कि आज पाठकजी भी सफेद स्याही में पास निकलेंगे, मैं चुप था। थोड़ी देर पश्चात् अधिकारी ने गजेट खोलकर बताया तो हम दस सहपाठियों में से केवल 3 पास थे, जिन में मेरा नम्बर प्रथम था। सब आश्चर्य करने लगे मुझे तो पूर्ण विश्वास था ही।


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