(श्री भगवान सिंह गौतम हैड मास्टर सितलहा)
आज से 12, 13 साल पूर्व की बात है, मैं दीपमालिका की छुट्टी में अपने परम मित्र श्री लाल छत्रधारी सिंह जी आमिन के पास भेट करने गया, उस वक्त मैं नवा गाँव के स्कूल में था जो आमिन से करीब 35 मील की दूरी पर है। वहाँ जाकर मैं दस्त की बीमारी से बीमार हो गया। बहुत अधिक दस्त आते थे, जिससे मैं बहुत ही कमजोर हो गया। जब छुट्टी के दिन समीप आ गये थे, तो मैं चलने का विचार करने लगा, मेरे मित्रों ने कहा कि इस दशा में भला आप कैसे जा सकते हैं, अभी ठहरिये अच्छे होने पर मैं सवारी द्वारा आपको पहुँचा दूँगा। मैंने कहा कि कल स्कूल खुलेगा मेरा पहुँचना बहुत ही जरूरी है। मित्रों के आग्रह से उस वक्त ठहर गया, परन्तु कुछ देर बाद जब मेरे मित्र लोग इधर-उधर हो गये, तब मैं बिना किसी से कहे सुने चुपके चल दिया, परन्तु बीमारी के कारण चलना बहुत ही कठिन था, थोड़ी दूर जाने के बाद एक दस्त फिर हुआ और अब चलने की हिम्मत न रही। तब मैं मन ही मन “हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।” का जप करते धीरे-धीरे चलने लगा। अब मेरी तबियत अच्छी जान पड़ने लगी और मैं भगवान की महती अनुकम्पा से सकुशल 35 मील की यात्रा पैदल करके स्कूल पहुँच गया। मार्ग में मुझे कुछ भी तकलीफ नहीं हुई, मैं उस वक्त 1 मील भी चलने योग्य नहीं जान पड़ता था, परन्तु न मालूम कैसे 35 मील पैदल चला गया और मार्ग में किसी प्रकार का कष्ट नहीं हुआ। यह परमात्मा की अनुकम्पा के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है।