सद्ग्रन्थों से जीवन-सुधार

August 1942

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(ले.- के. नन्द व्यास नम्बरदार, गरोठा)

मेरी जन्म-भूमि तो घुगुआ ग्राम में है, पर यहाँ गरोठा में मामा की जमींदारी पर गोद आया था। स्वतन्त्र होकर बिगड़ा, अपव्ययी होने के कारण तामसी व्यक्तियों की छाया मेरी आत्मा के ऊपर जमा हो गई। जिसकी वजह से घर, पड़ोस व गाँव में घृणा की दृष्टियाँ बरसने लगी। अनियमित होने से तन्दुरुस्ती नष्ट हो चली, चारों ओर से तिरस्कार का भाजन बन गया। अशान्ति और चिन्ता के बादल मस्तिष्क में मँडराने लगे। मैंने कुमार्ग पर कदम उठाया और विपत्तियों के जंजाल में फंस गया, जीवन भार बनने लगा।

ऐसे संकट के समय में मुझे जिन मित्रों ने जीवन दान देकर सच्ची सहायता की, उनका नाम है -’सद्ग्रन्थ’। अच्छी-अच्छी पुस्तकें पढ़ने की ओर मेरा झुकाव हुआ और फुरसत के समय में सद्ग्रन्थों का अध्ययन करने लगा। स्वाध्याय का शौक जैसे जैसे बढ़ा, वैसे ही वैसे उत्तमोत्तम पुस्तकें मेरे पास आने लगीं। मित्रता दिन दिन बढ़ने लगी। अब मैंने पुस्तकों को अपना सच्चा मित्र बना लिया है, क्योंकि जीवन को नष्ट करने वाली विपत्ति में से उन्होंने ही मुझे छुड़ाया हैं। ऐसे सच्चे मित्रों से बिछोह करने की इच्छा नहीं होती। अब मेरे जीवन का प्रधान कार्य सद्ग्रन्थों का अध्ययन और ज्ञान सम्पादन करना हो गया हैं। पिछली बुराइयाँ जिनने मेरे ऊपर बुरी तरह अड्डा जमा लिया था, धीरे धीरे अपने आप विदा हो गई हैं। देखता हूँ कि उत्तम विचार वाली पुस्तकों का स्वाध्याय जीवन-सुधार का बहूमूल्य साधन है, इसी भाग को अपना कर अन्य बन्धु भी मेरी तरह लाभ उठा सकते हैं।


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