धर्म की कमाई

August 1942

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(पं. रामनिवास शर्मा, मलावन)

इस संसार में जन्म धारण किया, उसके डेढ़ वर्ष के अन्दर माँ बाप दोनों ही स्वर्ग सिधार गये और हम छोटे-छोटे पाँच भाई अनाथ रह गये। घर की सम्पत्ति नातेदार, रिश्तेदार ले गये। हमारे सबसे बड़े भाई पं. बाबूराम शर्मा को 10 या 11 वर्ष की अवस्था में इस परिवार का भार उठाना पड़ा।

हमारी ननिहाल से दो छोटे-छोटे बैल आये, बस इसी के सहारे बड़े भ्राता जी अपने से छोटे भाई बाँकेलाल जी की सहायता से खेती करने लगे। खून का पसीना बना कर निकाला, धर्म पर दृढ़ रहकर हम छोटे भाइयों का भरण-पोषण करने लगे। धर्मयुक्त बोया हुआ बीज अनेक गुना होकर आने लगा, जब कि दूसरे किसानों की खेती में घाटा रहता था। भाई साहब की खेती में कभी घाटा नहीं हुआ। इसी छोटी सी आय से उन्होंने बहिन की शादी की, हम तीन भाइयों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाया। जिनमें भाई साहब सियारामजी सिडपुरा मिडिल स्कूल में 30 रु. मासिक पर अध्यापक हैं। और मैं मलावन स्कूल में 27 रु. पाता हूँ। भाई रामचन्द्र जी खेती का काम करते हैं।

बड़े भ्राता जी की आज्ञा में हम सब भाई हाथ जोड़े तैयार रहते हैं और उनकी धर्ममय बुद्धि बल से सुख शान्तिमय जीवन बिताते हैं, उनके धर्म कृषि के आधार पर हम सब की शादियाँ हो गई। अच्छा घर बन गया, नई जमीन पैदा कर ली, तथा घर ईश्वर की कृपा से सब प्रकार भरा पूरा है।

धर्म की कमाई सदा फलती-फूलती है।


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