बेईमानी का फल

August 1942

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(श्री नरेशचन्द्र जी रस्तोगी, कायमगंज)

मेरे एक मित्र का पूर्वजों के समय का मकान फतेहपुर में था। हमारे मित्र बहुत दिनों से उस मकान में नहीं रहते थे, इसलिए उसे बिना किराये रहने के लिए एक निर्धन ब्राह्मण को दे दिया। वह व्यक्ति बहुत दिनों से उस मकान में रहता रहा। पीछे उसके मन में बेईमानी पैदा हुई और उस घर पर अपना अधिकार बताने लगा। यह समाचार जब हमारे मित्र के कान तक पहुँचा, तो उनको यह “नेकी का बदला बदी” देखकर बड़ा खेद हुआ।

कुछ दिनों पश्चात् उनका जाना फतेहपुर हुआ तो उन्होंने देखा कि मकान की सारी लकड़ी, वह व्यक्ति बेच कर खा चुका है और मकान पर अपना कब्जा बताता है। इस पर उससे किरायेनामा लिख देने को कहा गया। परन्तु वह रजामन्द न हुआ, वरन् अपने मिलने वाले बदमाशों को फिसाद कराने के लिए लिया लाया। झगड़े का समाचार नगर में फैला। समझदार व्यक्तियों ने किरायेनामा लिख देने के लिए उससे बहुत कुछ कहा, पर सबकी बात को उसने अनसुनी कर दिया। अन्त में मामला मजिस्ट्रेट महोदय के सामने पहुँचा। उनने उसे खूब फटकारा, तब कहीं किरायानामा लिखने पर रजामंद हुआ। इस प्रकार यह घटना पूरी हुई।

लोगों ने देखा कि वह व्यक्ति कुछ समय पश्चात् भूखों मरने के कारण घर छोड़कर चला गया। उसके चले जाने के पश्चात् बाल-बच्चे भूखों मरने लगे और भीख माँग कर पेट भरने लगें। लेकिन उनको जब उस शहर में भिक्षा भी नहीं मिली, तो कुछ समय बाद वह लोग उस शहर से भी चले गये और इधर-उधर पाप फल भोगते फिरे।

हर व्यक्ति को समझ रखना चाहिए कि बेईमानी ऐसी वस्तु है जो करने वालों को और उसके बाल-बच्चों को भी दुःख देती है।


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