(श्री वी. पी. मेहरोत्रा बनारस)
बात बहुत दिन पुरानी हैं। उस दिन निर्जला एकादशी थी। नित्य की भाँति मैं गंगा स्नान कर रहा था। जल पर बँधे हुए तख्तों पर दस बारह पुजारी सन्ध्या - पूजन में मग्न थे। घाट के बगल वाले टूटे घाट पर एक दरिद्र व्यक्ति भगवती गंगा में स्नान कर रहा था। उसने सभक्ति स्नान किया और सूर्य नारायण को अर्घ देने के लिए गंगाजल भर कर अंजलि ऊपर उठाई।
वह अर्घ दे नहीं पाया था कि तख्ते के ऊपर बैठे हुए पुजारी एक दम बलबला उठे। “अरे ओ, पापी, अधर्मी, दुष्ट, नारकी!! ठहर, ठहर, हाथ नीचे कर, खबरदार, सूर्य को जल मत देना” इस प्रकार के अनेकों वाक्य-बाण उसके ऊपर बरस पड़े। हम लोगों का ध्यान उस कोलाहल की ओर गया। स्नान करने वाला व्यक्ति ठिठुरा हुआ खड़ा था, उसके हाथ प्रस्तर मूर्ति की भाँति ऊपर के ऊपर ही रह गये। गालियों पर गालियाँ बरस रही हैं। पुजारी लोग दिल के गुबार निकाल रहे हैं। वर्षों का अर्जीण वे आज गालियों के द्वारा निकाल देने पर तुले हुए थे। भय के मारे वह जहाँ का तहाँ खड़ा रहा तो उन धर्म गुरुओं का कोप और भी बढ़ गया। बेचारा बुरी तरह पिटने लगा।
अब हम लोग घटना-स्थल की ओर बढ़े। मालूम हुआ कि स्नान करने वाला कोढ़ी है। वह दीन, दरिद्र, रोग पीड़ित, दुखिया भगवती गंगा में स्नान करके सूर्य उपासना से अपने विचारों के अनुसार अपने कष्टों से छूटना चाहता है, पर वे धर्मध्वजी ऐसा करना धर्म विरुद्ध समझते हैं। इसी बात के लिए यह गाली-गलौज और मार-पीट हो रही है। हम लोगों ने जैसे-तैसे उस दुखिया को छुड़ाया, वह रोता कलपता अपने घर चला गया।
इस घटना के बाद फिर कभी वह दुखिया स्नान करता हुआ नहीं देखा गया। पर हाँ, उसकी पूर्ति अब एक पंडित जी कर देते हैं, जिन्हें देखकर पुरानी बातों का स्मरण हो आता हैं। पंडित जी की दशा उस दुखिया से भी अधिक शोचनीय, घृणित, एवं दयनीय हो गई है, पर उन्हें गाली बकने, मारने व निकालने की किसी की हिम्मत नहीं होती।
यह घटना है। घटना ही से अनुभव का निर्माण होता हैं। पण्डित जी के प्रत्यक्ष अनुभव से मेरे जीवन में एक भारी परिवर्तन हो गया हैं। जब भी मैं किसी दरिद्र या अपाहिज को देखता हूँ तो मेरे मुँह से निकल पड़ता है-”अवहेलना का परिणाम।”