धर्म से ही संसार की रक्षा होगी!

August 1942

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बिना धर्म का आश्रय लिये किसी का कल्याण न होगा।

हे ईश्वर के राजपुत्रों! अधर्म छोड़कर धर्म पर आरुढ़ होओ।

युग परिवर्तन की इस विषम घड़ी में चारों ओर अशान्ति, आतंक और अस्थिरता का वातावरण छाया हुआ है। आगामी घड़ियाँ अपने साथ जिस उथल-पुथल को ला रही हैं, वह सब हमें देखना होगा। भविष्य की हर परिस्थिति का मुकाबला करने के लिए तैयार रहना प्रत्येक बुद्धिमान का आवश्यक कर्तव्य है।

अखण्ड ज्योति आपके कर्तव्य का आज भली प्रकार स्मरण करा देना चाहती है। वह मानवता के नाम अपना सन्देश भेजती है कि-”अधर्म से नीचे उतरो और धर्म की शरण में आओ।” विश्व शान्ति का एक ही मार्ग है कि अपने संकुचित स्वार्थों, तृष्णाओं, पाखण्डों और कुविचारों को छोड़ कर सत्य का अवलंबन ग्रहण जिया जाय। अनीति से तो विपत्तियाँ बढ़ ही सकती हैं।

निस्सन्देह आगामी नवीन युग द्रुत गति से दौड़ता हुआ चला आ रहा है, उसमें असत्य का नाश होकर सत्य की सत्ता स्थापित होगी। विश्व का नव-निमार्ण कूटनीतिज्ञों से न हो सकेगा। यह कार्य तो सन्त पुरुषों द्वारा सत्य के आधार पर ही होगा। इसलिए असत्यपूर्ण प्रपंचों में अपनी बुद्धिमत्ता दिखाने वालो! अपनी आध्यात्मिक स्थिति पर पुनर्विचार करो, ईश्वर से डरो, सत्य का आश्रय ग्रहण करो और धर्म पर आरुढ़ हो जाओ।

सत्य धर्म है। प्रेम धर्म है। न्याय धर्म है। इसलिए हे धर्मात्माओं! मिथ्या पाखण्डों, रूढ़ियों, अन्ध परम्पराओं और तुच्छ स्वार्थों में उलझकर अपना समय बर्बाद मत करो। हृदय के कपाटों को खोल डालो और सच्चे धर्म का प्रकाश अन्दर आने दो। भविष्य में सत्य और केवल सत्य ही विजयी होगा, इसलिए असत्य को हृदय में से धो डालो और सत्य की उपासना करो- धर्म की उपासना करो!

आज की दुनिया खौलते कढ़ाव में उबल रही है। ऐसी विपत्ति से मनुष्य जाति की रक्षा धर्म कही कर सकता है। इसलिए सुख, शान्ति के इच्छुकों से ‘अखण्ड ज्योति’ मार्मिक अपील करती है कि- हे ईश्वर के अमर राजपुत्रों! अनीति को छोड़ कर नीति पर आरुढ़ हो जाओ, हे मनुष्यों! अधर्म से घृणा करो और धर्म को अपनाओ।

रक्षा करने की शक्ति धर्म में ही होती है। आप धर्म की रक्षा करेंगे, तो धर्म आपकी रक्षा करेगा।

“धर्मे रक्षति रक्षतः।”

कतो स्मर कृत्स्मर

-श्रुति

ईश्वर को स्मरण कीजिए, किये कर्मों को स्मरण कीजिए!

जीवन का महत्व इसी पर निर्भर है

-कि-

आप प्रभु को स्मरण रखें और पिछले अनुभवों से लाभ उठावें।

वर्ष 3 सम्पादक - श्रीराम शर्मा आचार्य अंक 8


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